Wednesday 4 June 2014

पेड़ों से अपना मतलब न निकाले...

विश्व पर्यावरण दिवस की आप सभी को कोई शुभकामनाएं नहीं देना चाहता लेकिन एक गुजारिश करना चाहता हूं कि अपने घर के आंगन से देखे, अपने बालकनी से देखे, अपने घर के सबसे अहम दरवाजे पर खड़े होकर देखों और अपने मन से पूछे। क्या आप वहीं देख रहे हो जो आप देखना चाहते थे। जो हरा भरा माहौल आप को ठंडक देता है। क्या वह आप के आसपास है यदि है तो आप जो महसूस करते है वह बहुत ही आंनदित होता है। और जिन लोगों का इनसब से कोई तालोकांत नहींं उनसे पूछो की पास की कालोनी में बने बगीजों को देखकर उनका मन क्या कहता है ? सब को हरा-भरा वातावरण पसंद है, बहुत से लोग इसको जी जान से पालते भी है  लेकिन एक अनार सो बिमार वाली लत सब गुड-गोबर एक कर देती है। पौधा...पौधा और पौधा ही बन कर रह जाता है। खत्म भी हो जाता है। बहुत कम ऐसे लोग है जो एक बार फिर नई उम्मीद को उस स्थान पर रौपते है लेकिन फिर भी यदि वह जगह खाली हो जाती है तो उम व्यक्ति का मन उद्वेलित हो जाता है। फिर नए उम्मीद शायद वहां नहीं पनपती, लेकिन व्यक्ति की मन की लालसा कही और रंग जरूर लाती है। वह पौधे को पेड़ बननाने के प्रयत्न में लगा रहता है।
कुछ लोगों को परिवर्तन से चिड़ है, कुछ लोगों किसी व्यक्ति हाथ से किए गए कार्य से चिड़ है, पेड़ से चिड़ करने वाले कम होने लेकिन मैं यकीन से कह सकता हूं कि पौधे को रौपने से उस पौधे को मारने वाले अधिक हैं।
माता जी कहती है कि आज का वातावरण मतलब है सब अपना मतलब निकालते है। यह सीख या भी इस्तेमाल होती है। जो पेड़ लगाते है उनका भी मतलब होता है और जो नहीं लगाते या कांटते हैं उनका भी अपना अलग मतलब होता । लेकिन बात पते कि बस इतनी सी है कि मतलब जाहे जो भी हो लेकिन वातावरण को हरा भरा बनाया जाए। चाहे मतलब के लिए ही सही। पेड़ लगाएं फल सीचने के लिए ही सही, पेड़ लगाए छांव के लिए ही सही, पेड़ लगाए लकड़ी की प्राप्ती के लिए ही सहीं लेकिन जरूर लगाएं। कुछ न हो से कुछ होना बहतर है..... अच्छा है..... और जो अच्छा कार्य होता है उसमें देर नहीं करनी चाहिएं। © एस.के.ए

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