सुंदरलाल जितने जुझारू और प्रकृति की रक्षा के लिए सक्रीय थे, उतने ही सरल, सौम्य और चिंतन-मनन करने वाले।प्रकृति के उपासक सुंदर लाल बहुगुणा और उनकी पत्नी ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया, इसीलिए उनके कार्य के प्रति प्रेम, उत्साह और लगन के चलते लोग उन्हें वृक्षमित्र और हिमालय के रक्षक कहते है।
लकड़ी पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार
उन्होंने न केवल पेड़ों बल्कि पानी, हवा, पहाड़, विस्थापन और पहाड़ी कल्चर पर होते प्रहार के लिए भी जीवन भर लड़ाई लड़ी और अपना पूरा जीवन समाज कल्याण में लगा दिया। उनके साथ उनकी पत्नी विमला देवी ने भी पर्यावरण सुरक्षा में उनका सदैव सहयोग किया है। 1970 में शुरु हुए चिपकों अंदोलन में सुन्दरलाल बहुगुणा के साथ गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट और महिलाओं का नेतृत्व गौरादेवी ने किया.... जो पेड़ों से चिपक कर उन्हें अपनी संतान की तरह पेड़ों को कटने से बचाया।
जिस समय यह आन्दोलन हो रहा था, तब पर्यावरण के साथ बड़ी छेड़छाड़ की जा रही थी। जिसके भावी परिणामों को भांपते हुए इन दूरदर्शी महानुभवों ने सही समय पर सही प्रहार किया । ऐसे महान व्यक्तित्व अमर हो जाते है, जो समाज के काम आते है।
सुंदरलाल बहुगुणा गुरुदेव आपको श्रद्धांजलि।
सादर नमन।।