Thursday 11 September 2014

केंद्रीकरण और महिलाएं

बात कहीं से भी शुरू हो और कहीं पर भी खत्म, महिलाओँ का जिक्र और महिलाओं की भागेदारी के बिना समाज में कोई बात पूरी नहीं होती। महिलाएं समाज में हर प्रकार से सभी मुद्दों का केंद्र है। समाज के सम्पूर्ण वातावरण में महिलाओँ की भूमिका अहम है। अनके कार्य असीमित है। उनकी कार्यशैली का कोई पैमाना नहीं। अनके अथाह प्रेम के सागर की कोई गहराई नहीं (असीमित)। महिलाओं को प्रेम का भंडार कहा जाता है। जो एक ही जीवन में अनेक कार्यों का निर्वहन करतीं है। कई भूमिकाओं को एक साथ निभाती है। अपने सुख-दुख की चिंता करें बिना समाज को आगे बढ़ाने का कार्य करतीं है। समाज निर्णाम में भूमिका अदा करतीं हैं। फिर भी यह समाज और उसके सामाजिक प्राणी उसकी अवहेलना करते है। उसके स्थान को हमेशा नीचे रखने का प्रयास करते हैं। आखिर क्यों ? यह समाज की देन है और जटिल सामाजिक चेतना की यह निर्मम हत्या है।समाज में बहुत सी अस्थिरताएं है। समाज की अपनी एक सीमा है। समाज की अपनी एक बनावट है और उसके कुछ नियम। इन नियमों की धूरी के आसपास घूमती महिलाएं, जब अपने क्षेत्र का विस्तार करना चाहती है तो यह पुरुष समाज आगे आ जाता है और महिलाओं के लिए लक्ष्मण रेखा निश्चित करता है। इसमें कोई दो राय नहीं की महिलाएं अपने में सिमट रहीं है। वह पुराने प्रतिमानों को तोड़ कर नए प्रतिमान गढ़ रहीं है। महिलाएं आगे निकल रही है और बड़े पदों पर बैठ कर दुनिया को नई मिशाल दे रहीं हैं। 

इन सब के बावजूद कुछ हाथ ऐसे भी है जो साकारात्मक अखल जगा रहें है। यह बहुत कम और सीमित है, जिनकी आह्वान की आवाज़ चंद दिनों और कुछ सौ किलोमीटर तक सिमट जाती है। इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि महिलाओं ने ही महिलाओं के आगे बढ़ने के रास्तों में कांटे बोए हैं। महिलाएं का इतना दुश्मन समाज नहीं, जितनी महिलाएं एक दूसरे के प्रति है। पता नहीं क्यों कई बार देखा गया है कि महिलाएं दूसरी महिला से द्वेश रखती है। पुरुष समाज महिलाओं के प्रति उतना भी कट्टर नहीं है जितना माना जाता है। व्यवहारिक तोर पर देखा जाए तो कई विदेशी वैज्ञानिकों ने यह शोध कर पता लगाया है कि जिन संस्थानों में महिलाएं और पुरुष दोनों काम करते है उन फर्मों की कार्य करने की क्षमता उन फर्मों से कहीं अधिक होती है। जहां मात्र पुरुष या मात्र महिलाएं कार्य करतीं है। समाज को दो पाटों में बांटने और आगे बढ़ने के रास्तों में अवरोधक का काम उन कुछ महिलाओं की देन है। जो आगे बढ़ चुकी है, लेकिन किसी दूसरे को आगे बढ़ता देखना नहीं चाहती है। समाज का यह एक कड़वा सच है जो समाज के हर घर परिवार में देखा जा सकता है ।  

महिलाओं की भूमिका के ऐसे अनेकों बड़े उदाहरण है जिसमें उन्होंने बहुत बड़ी कुर्बानी देकर समाज और देश के लिए अतुलनीय कार्य किए है, लेकिन इन सब के पीछे एक सच्ची सृद्धा और सोच होती है। जो समाज के हर तब्के में शायद नहीं पाई जाती है। महिलाएं समाज का अटूट और अहम हिस्सा है। जो कई समाजों को जोड़ने और उन्हें आगे ले जाने का कार्य करतीं हैं। यदि किसी समाज में शिक्षा का अभाव होता है, लेकिन उस समाज में रहने वाले लोगों के आदर्श बड़े हो और देश के लिए सच्ची सृद्धा हो तो, बिना सृजनात्मक शिक्षा-दीक्षा के भी बड़े आदर्शों के कार्य निस्वर्थ किए जाते है। आज शिक्षा व्यवहारिक नहीं है, सामाजिक नहीं है। बच्चों में माता-पिता और गुरुओं के प्रति रोष बढ़ रहा है। वह अपना रास्ता खुद खोजने में विश्वास रखने लगे है। ऐसे में लड़िकयों के लिए तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में स्वयं को सिद्ध करने के लिए उन्हें खुद को कई नए रूप में ढ़लना होता है। माता-पिता अपने बच्चों को जो परिवेश देना चाहते, कभी-कभी परिवार के अन्य सदस्यों को वह सब खटकता है और बेटा और बेटी के लिए अलग-अलग प्रतिमान गढ़ दिए जाते है। दोनों के लिए अलग-अलग सीमाएं तय कर दी जाती है। ऐसे में बच्चों के अपने परिवेश, परिवार के अपने परिवेश और समाज के परिवेश में खुद को स्थापित करते हुए आगे बढ़ना होता है। लड़के खुद की स्वतंत्रता को खूब इंजोय करते है, लेकिन जैसे-जैसे लड़कियों की उम्र में विस्तार होता है उसी के अनुरूप उनके अधिकारों का केंद्रीकरण होने लगता है। धीरे-धीरे स्वतंत्राएं सिमटने लगती है। यह समाज की देन है जो खुद सामाज ने स्थापित की है और कई बार समाज खुद को भी इतिहास की तरह दोहराता है और समय के साथ कदम ताल न करने पर स्थितियां खुद को ढ़ाल लेती है। और समाज की चेतनाएं सीमट कर, नए परिवर्तन को स्वीकार कर लेती है। यह बात सत्य है। ... लेकिन इन परिवर्तनों को एक लम्बा सफर के साथ कई सदियाएं तक लग जाती है, लेकिन केंद्रीकरण की सीमाएं समय के साथ चूर-चूर जरूर होती हैं। जहां यह सब संभव नहीं हो पाता वहां केंद्रीकरण हावी रहता है और कई शक्तियां उसे  धवस्त करने के लिए छोटे-छोटे प्रयास में रहती हैं। ताकि परिवर्तन और आजादी का नया सवेरा का उदय हो सके।



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