Wednesday 25 February 2015

हम अपनी जरूरत देखतें हैं बस

 छोटे से गमले में लगा हुआ है रबड़ का पेड़।
यदि गौर करे तो हजारों नज़रे इस तरह के पेड़ देख सकतीं हैं। जो किसी ना किसी चुन्ने से गमले में लगे होते है और अपने बढ़ने, फलने फूलने, खिलखिलाने, ऊचा उठने की गुहार लगाते से प्रतीत होते है। हम अपने आंगनों, घरों को, बालकनी को, घर की खिड़की को या खिड़की के सामने वाले झरोकों को सुंदर दिखाने, बनाने की जुगत में कुछ ऐसा कर बैठते है जो कि शायद आप को सुखदायी लगता हो लेकिन उस पेड़ की मंशा को जरूर महसूस करके देखे जो वह चाहता है। कभी देखा होगा कि गमलों में मिट्टी इतनी भर दी जाती है कि गमले में पानी की कुछ चंद यूनिट ही गमले में रह पाती है बाकी सब बह जाता है। हर पौधे की अपनी प्यास होती है। हर पौधा, पौधा नहीं रहता लेकिन अपने घरों के गमलों में लगे पेड़ पर गौर कीजिए जो पेड़ बनना चाहता है, लेकिन क्या बना हुआ है...... शायद पौधा यह समस्या ठीक उसी प्रकार है जैसे आप किसी चिड़िया के पंख कतर दे और फिर उससे उड़ने की उम्मीद करें। पेड़ हमेशा खुले वातावरण में पलता है, जीता है बढ़ता है। हम पेड़ो को छोटे-छोटे गमलों में कैद कर रहे है उसे बढ़ने से रोक रहे है। ऐसे में असहाय पेड़ या तो गमले को टूटने की गुहार लगाता है या इस पढ़े-लिखे इंसान पर भरोसा करता है कि एक दिन इसे जरूर पता चल जाएगा कि यह पैधे गमलों के लिए नहीं धरा के लिए बने है। जहां से वह खुद को जोड़कर बहुत विशाल, घना और बलवान बन जाता है। वह धरती माता के चरणों को स्पर्श करना चाहता है ताकि मां की ममतत्व को पाकर वह भी पल से, जी सके और हम जैसे इंसानों को भी जिन्दा रहने में हमारी मदद् कर सके। हमें अपनी गमला मानसिकता को तोड़ना होगा और अपने घरों के पेड़ के लिए जगह छोड़ना होगा। नहीं तो पेड़ भी नष्ट हो जाएंगा और मानव भी। ...... 

अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष - 2023

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