सुरेंद्र कुमार अधाना |
यादों के मुकाम में हमने नित नए सपने सजाए हैं..
आज अचानक आप हमें ना जाने क्यू याद आए हैं..
हमने तो दफन कर ली है अपनी संवेदनाएं भी...
बार-बार आखे क्यू आप का चहरा दिखाए हैं..
आज अचानक आप हमें ना जाने क्यू याद आए हैं..
हमने तो यादों को सचेत कर दिया था कि...
बीते पल की याद न दिलाए हाल-ए-दिल को..
इस विरह की बेला को क्यों फिर से याद दिलाए है...
आज अचानक आप हमें ना जाने क्यू याद आए हैं..
पुराने गीतों की तरह सोना सी हो गई है अपनी यादे..
जिनकी कीमत समय के साथ-साथ स्वयं बढ़ जाए है..
आज अचानक आप हमें ना जाने क्यू याद आए हैं..
सूखे फूलों की पत्ती की तरह हो गई है जिंदगी अपनी..
लेकिन मध्म-मध्म खुशबू फिर भी न जाने कहा से आए है...
आज अचानक आप हमें ना जाने क्यू याद आए हैं..
बड़ी मुश्किल से मन को लगाया था अपने को संभालने में..
लेकिन न जाने क्यूं ये दिल फिर भी खिंचा जा जाए है...
आज अचानक आप हमें ना जाने क्यू याद आए हैं.. © सुरेंद्र कुमार अधाना