Saturday 31 December 2022

अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष - 2023

भारत गावों का, किसान का देश है। भारत जब आज़ाद हुआ तो वह खण्ड-2 था, बहुत सी रियासतें, रजवाड़े देश के अलग-अलग भू-खण्डों पर अपना वर्चस्व जमाएं हुए थे। जहां किसानों को बहुत ज्यादा आज़ादी नहीं थी और न ही बहुत ज्यादा अच्छी स्थिति। किसानों, मजदूरों, गुलामों का जो शोषण अंग्रेजो द्वारा किया जा रहा था, वही नीति कमोवेश बाद तक चलती रही। किसानों, मजदूरों, गुलामों से काम लिया जाता रहा और उनकी कमाई का अधिकांश  हिस्सा उनसे किसी ना किसी रूप में वापक ले लिया जाता था।

1947 में देश आज़ाद हुआ। रियासतें, रजवाड़ों के अलग-अलग पड़े भू-खण्डों को जोड़कर एक राष्ट्र बनाया गया। देश आज़ाद होने के बाद से किसानों की स्थिति में बदलाव का दौर नज़र आने लगा, लेकिन पुरानी मानसिकताओं और शोषण के रंग ने नया रूप ले लिया था। किसानों की स्थिति बहुत वर्षों तक हू-ब-हू रहीं। सरकार द्वारा प्रथम पंचवर्षीय योजनाएं तैयार की गई, और राष्ट्र के जन-मानस को सबसे पहले खाद्य पदार्थों में भारत को स्वावलंबन बनाने के लिए कार्य किए ताकि अनाज के रूप में पूरा भारत भर पेट भोजन कर सके। उसके लिए जहां जैसी स्थिति थी अनाज, मोटा अनाज, रागी, जौ, बाजार, मक्का आदि जैसी भौगोलिक स्थिति थी, अनाज को पैदा किया गया। तब भारत दूसरे देशों से अनाज आयात करता था। भारत सरकार की प्रथम पंचवर्षीय योजना का यह प्रभाव रहा कि नहर, नलकूप, दूर-दराज गांवों में सरकारी ट्यूब-वेल की सहायता से सिंचाई का रास्त निकाला गया। जिससे किसान अधिक भू-खण्ड पर खेती कर सके। साथ ही खेती को थोड़ा उन्नत बनाने के रास्ते भी खोजे गए।

फोटो- गूगल ईमेज के माध्यम से

तीसरी, चौथी और छठी पंचवर्षीय योजना में कृषि पर अधिक बल दिया गया क्योंकि भारत का अधिकास जन-मानस कृषि पर ही निर्भर था और भारत के पास ऐसी भूमि बहुत ज्यादा थी जिस पर खेती की जा सकती थी, लेकिन परम्परागत तरीके से या तो खेत की जुताई नहीं हो पाती थी, यदि खेत तैयार हो जाते थे बुआई नहीं हो पाती थी, यदि बुआई हो गई तो सिंचाई की व्यवस्था नहीं थी, यदि सिंचाई भी कर ली गई तो मौसम का डर लगा रहता था। खेती बहुत संकट के दौर से गुजर रही थीं।

ऐसे में किसान के पास सिंचाई के अधिक साधन न होने के चलते देश के ऐसे भागों में जहां पानी की किल्लत रहती थी। वहां जौ, बाजरा, मक्का की बुआई करने लगे। यह लोगों के खाने का प्रमुख साधन था और पशुओं का चारा भी। पानी की समस्यां दूर हो जाने के बाद किसानों ने बड़ी मात्रा में अनाज, जौ, चना, मुंगफली, चावल आदि फसलों को तैयार करना प्रारंभ कर दिया। जिससे सम्पूर्ण भारत को अनाज भी मिला और कुपोष जैसी घातक समस्यां को भी दूर किया गया। आज भारत से गेहूं की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत ज्यादा मांग है। वर्ष 2021-22 में भारत ने 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया। इसकी कीमत करीब 2.05 बिलियन अमरीकी डॉलर थी। अब उन्नत तकनीकि ने किसानों के लिए खेती के नए रास्ते खोले है ट्रेक्टर, कल्टीवेटर, हेरो, टीलर, मैडा, सीड ड्रिल, कल्टीवेटर, रोट्री और फसलों की बुआई के लिए मशीन जैसे गेहूं की बुआई, आलू, गाजर, मूली, धनिया बुआई की मशीन आदि, बीजों के रौपाई व पौध को सीधे खेतों में रौपने के लिए भी मशीन बाजार में मौजूद है। सरकारों द्वारा भी किसानों को सब्सिडी देकर खेती करने के लिए किसानों को सहायता दी जा रही है। वर्तमान में केसीसी कार्ड योजना, सोलर पैनल योजना, फसल बीमा योजना, किसान सम्मान निधि योजना आदि ऐसी योजनाएँ है जो किसानों का सहायता प्रदान करतीं है ताकि कृषक अपनी फसलों की बुआई और देखभाल समय पर कर सके और हानि होने पर पर्याप्त मुआवजा भी मिल सकें।  

अब हम अपने अतीत में लौट रहे है। अनियमित मानसून ने पिछले कई वर्षों से फसलों को बुरी तरह प्रभवित किया है। सन् 2022 के खरीफ मौसम की उपज के लिए सरकार की चिंता बढ़ा दी है। वर्ष 2022 में ज्यादातर इलाकों में धान और दलहन की बुआई बुरी तरह प्रभावित हुई है। जलवायु परिवर्तन ने देश में गेहूँ और धान के उत्पादन को प्रभावित किया हैजो मोटे अनाज पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को दर्शाता है। गेहूँ और धान की खेती अनिश्चित मौसम स्वरुप के कारण देश की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं है। ऐसे में भारत सरकार ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 घोषित किया है ताकि ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, रागी आदि के उत्पादन को बढ़ाया जा सके क्योंकि मोटे अनाज में सूखा सहिष्णुता, प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति उपयुक्त आदि विशेषताएँ विद्यमान हैं।

यदि उद्योग की दृष्टि से देखों तो भी मोटे अनाज की बाजार में भरपूर आवश्यकता है। जैसे बाजरा - शराब बनाने, स्टार्च, बेकरी, पोल्ट्री और पशु आहार के रूप में, मक्का – चारा, बेकरी, मुर्गी पालन, स्टार्च और जैव-ईंधन के रूप में, चारा या फीड-  गुड़, बेकरी, फ्रुक्टोज सिरप आदि के लिए। वहीं भारत के उत्तरी राज्यों जैसे  हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश  में ज्वार और बाजरा की खेती  मुख्य रूप से चारे के लिए की जाती है। यह अन्य खेती की तुलना में कम लागत और कम सिंचाई में भी उगाई जा सकती है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (International Year of Millets) के रूप में मनाने के भारत के प्रस्‍ताव को स्‍वीकृति दी है। इसे हमें अवसर के रूप में लेना चाहिए। 

@सुरेंद्र कुमार अधाना

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अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष - 2023

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