उसे न किसी की बात सुहाए, न भाए बरसात।
वह अपनी ही धुन में रहती , चाहे रात्रि हो, चाहे प्रभात।।
वह अपनी ही धुन में रहती , चाहे रात्रि हो, चाहे प्रभात।।
सारे दिन वह भर-भर सोए, रात्रि में हो जाए उठ तैयार।
रातों में वह सपने बुनती, सुबह थक, सो जाए भरमार।।
सभी को वह टक-टक देखे, पहचाने सबको बार-बार।
थोड़ी देर में सब भूल जाती, फिर से जांचे बारम्बार।।
मैं तरस्ता हूं, उसके एक दिदार को।
प्रेम उसे करता हूं... अथाह ! भरमार !!
© सुरेद्र कुमार अधाना
दिनांक : 22 फरवरी 2015 (कविता लिखने की तिथि)
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मैेरे प्रथम जन्मदिवस पर 07 माह की नन्हीं परी, नींद में ही शुभकामनाएं देती हुई। |