Thursday 2 March 2017

सरकार की मंशा और जनता की आकांक्षाएं

सरकार की मंशा और जनता की आकांक्षाएं के बीच बहुत बड़ा अंतर प्रत्येक मेनिफेस्टों में साफ देखा जा सकता है। इसको आप हाल ही चुनावों में स्पष्ट रूप से देख सकते है। उम्मीदवारों के द्वारा दिए जाने वाले वादे और जनता की आवश्यकताओं को टटोलकर ही अलग-अलग जगहों के मेनिफेस्टो तैयार किए जाते है। यदि पुराने 15 या 20 साल पहले के मेनिफेस्टों को देखे तो यह सभी बाते दौबारा दौहराती हुई देखी जा सकती है। कहने का मतलब साफ है मंत्रियों या उम्मीदवारों को पता है कि कहां पर क्या काम किया जाना है फिर भी पांच साल कम क्यों पड़ जाते है ? फिर से उन्हीं बिंदुओं पर काम करने की जरूरत क्यों होती है ? यदि किसी कार्य के लिए पांच साल कम है तो ऐसी स्थिति में मेनिफेस्टों में वादे उसी रूप में किए जाने चाहिए। जनता को भी समझना होगा की वह किस मुद्दुओं पर काम करना चाहता है और काम करने की रणनीति क्यों होगी।
बहुत सी जनता केवल कुछ रोज मर्रा की चीजों के लिए अपने वोट को लुटा देते है, वास्तविकता अधिकांशत. यह जिम्मेदारी सरकार की स्वत. सभी नागरिकों को दी जाती है, लेकिन जानकारियों का अभाव के चलते जनता यह नहीं जान पाती है कि उसे कैसे, कब और किस तरह प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे में उम्मीदवार उन सभी चीजों का आश्वासन देकर वोट पाने की जुगत करने से कभी गुरेज नहीं करते। यदि व्यवहारिक रूप से इन सभी समस्याओं को देखे तो बहुत सारे नागरिकों के पास आज भी कोई-बड़े मुद्दे नहीं है। बहुत सारी जनता अपने आप में फसी हुई है। यदि किसी मुद्दे पर बात भी की जाती है तो उम्मीदवार वादा करते हुए साफ मना भी इस रूप में कर देता है कि यह मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है या फिर सरकार द्वारा उतना फंड नहीं मिला है जिससे काम किया जा सके। यह हम सभी वोटर को समझना होगा की उम्मीदवार जो भी वादे कर रहा है वह कितने धरातल से मेल खाते है। आपने मत के अधिकार का प्रयोग हम जाति, समाज और धर्म से ऊपर उठ एक ऐसे उम्मीदवार को चुने जो सही में जनता के मर्म को समझता है और जनहित में काम करना चाहता है।  

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