Thursday 22 December 2016

नोट बंदी में... बंद हालात, आम मजबूर लाइन में मजदूर

किसी को कैसे विश्वास दिलाए, कि हम कितनी मजबूरियों से गुजर रहें है। घर में जमा पूंजी को एक-एक कर कम होते देख बहुत सी जरूरत की वस्तुओं से दूरी बना रहे है। मैरा यह मानना है कि मध्मवर्गीय परिवारों और इससे नीचे का जीवन जीने वालो  के लिए शायद यह निर्णय अभिशाप की तरह होगा, ऐसे में वह व्यापारी जो एक दिन यह काम पड़ने पर अतिरिक्त लोगों को रोजगार देकर लाखों मदूरवर्गीय परिवारों का जो आसरा थे उन्होंने भी इस नोटबंदी के दौर में बहुत से लोगों से अपना पल्ला रुपयों की किल्लत के चलते छुड़ा लिया है। वह मजदूर वर्ग जो रोज काम की तलाश में घर से निकलता है, आज महीने भर काम न मिलने के कारण घर में बिना सब्जी के सूखी रोटी चाब रहा है। परिवार में बुजुर्गों और बच्चों को विश्वास दिला रहा है कि अब अच्छे दिन आएंगे। जैसे-जैसे एटीएम या बैंक से रुपये  निकालने वालों की लाइन दिन-प्रतिदिन लम्बी हुई है ठीक उसी प्रकार गरीबी रेखा से नीचे आने वाले गरीबों को राशन बांटने वाली दुकान पर लाइनों में लोगों की संख्या में तीन गुना इजाफा हुआ है।
कुछ मध्यमवर्गीय ऐसे लोग भी है जो स्थिति को सुधरने की बांट देख रहे है। जो सजग नागरिक और नेताओं पर विश्वास रखने वाले बहुत से बढ़े-लिखे लोग भयभीत नहीं भी होना चाहते है। सवा महिनों तक घर में रखे राशन पर विश्वास करते हुए और बैंके में जमा पूंजी पर विश्वास के चलते किसी प्रकार गांड़ी तो चला पा रहे है, लेकिन रफतार से कतरा रहे है।  
विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे नम्बर के देश और एक सौ तीस करोड़ जनसंख्या वाले देश के लिए देश के प्रधानमंत्री का यह निर्णय आम लोगों की जरूरतों से बड़ा नहीं हो सकता। यदि किसी देश का नागरिक परेशानी में रहेगा तो ऐसे में देश की कमान को अपने हाथ में लेने वाले की चिंताा, प्राथमिकता राष्ट्र की जनता होेनी चाहिए। बहुत सी ऐसी परेशानियां है, जो दिखाई नहीं देती, कुछ ऐसी दिक्कते है जो खुद पनप जाती है। ऐसी स्थिति क्यों आती है, इस पर देश के पास मुक्कमल जवाब या व्यवस्था होनी चाहिए।
कुछ लोगों का मानना हो कि यह सब कालाधन को कम करने या कालाधन को पकड़ने के लिए किया जा रहा है, तो ऐसे में क्या हमारे पास एक मात्र यही विकल्प बचा था। यदि हम आय की जांच करना चाहते है तो इसके लिए भी नीति स्पष्ट होनी चाहिए। एक ओर सरकार कालाधन को खत्म करना चाहिए या यू कहे की काला धन रखने वाले कुबेरों को पकड़ना चाहती है तो ऐसे में कुछ के चारों ओर सरकार क्यों घूम रही है, बहुत सी सूचियां सरकार की जानकारी में हैं, उन पर विचार क्यों नहीं किया जा रहा ? जो बड़ी कम्पनियां है जो गबन करती है उनसे भरपाइ क्यों नहीं की जाती ? यदि कोई घोटाला होता है तो ऐसे में उस रकम की छतिपूर्ति  उसी व्यक्ति से क्यों नहीं की जाती ? बहुत सारे नेता ऐसे है जिनकी सम्मपत्ति कुछ ही सालों में कई सौ गुना हो गई उस से जवाब क्यों नहीं मांगा जाता ? 70 प्रतिशत जनसंख्या आज भी ऐसी है जो अपना जीवन बसर कर रही है। रॉयल जीवन जीने की आशा तो ना ही की जाएं तो अच्छा है। भारत का जीवन स्तर पर कोई बात नहीं होती, लोगों को रोजगार देने की कोई बात नहीं होती, मानव संसाधन मंत्रालय कितनी सुस्ती से काम करता है सब हमारे सामने है यदि व्यवस्था बूढ़ी हो गई है तो ऐेसे में इसे नौजवानों के हाथों में सौप देना चाहिए।  
एक मत यह भी निकल कर आ रहा है कि सरकार राष्ट्र को डिजिटल बनाना चाहती है। कौन ऐसा व्यक्ति नहीं है जो हर काम को सुगमता से न करना चाहता हो, यदि कोई भी व्यवस्था उसके काम को आसान बनाती है तो जनता उसको अपनाने से नही ंचूकते। लेकिन दिक्कत यह है कि देश के बहुत से शहरों में लाइट की स्थिति अभी ठीक नहीं है। इस नोट बंदी के दौर शहरों की बड़ी-बड़ी दुकानों पर भी कार्ड से पेमेंट नहीं हो पा रहा है। हमारी नीति किसी भी व्यवस्था को लाने से पहले हम पूर्ण तैयारी के साथ काम करना चाहिए। जो सरकार की बड़ी चूक रही।
कालधन आया, क्या नहीं आया सरकार जाने, लेकिन आया तो उसका फायदा आम जनता को क्या होगा, नहीं आया तो जनता को इतने दिन क्याे परेशान किया। सवाल अनेक है जो शायद हमे सरकार से नहीं ....सरकार को खुद से पूछने चाहिे। आम जनता को अधिकार के नाम पर क्या मिला है। सब कुछ शायद कुछ नहीं। विचार का प्रश्न है विचार कीजिगा..........

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