आषाढ़ का एक दिन महाकवि कालिदास के निजी जीवन पर केंद्रित है। जो कि 100 ई.पू से 500 ईसवी के अनुमानित काल में व्यतीत हुआ। मोहन राकेश को कहानी के बाद सफलता नाट्य-लेखन के क्षेत्र में मिली| हिंदी नाटकों
में भारतेंदु और प्रसाद का बाद का दौर मोहन राकेश का दौर है जिसें हिंदी नाटकों को
फिर से रंगमंच से जोड़ा। हिन्दी नाट्य साहित्य में भारतेंदु और प्रसाद के बाद यदि लीक
से हटकर कोई नाम उभरता है तो वहा मोहन राकेश का है। हालाँकि बीच में और भी कई नाम आते हैं जिन्होंने आधुनिक
हिन्दी नाटक की विकास-यात्रा में
महत्त्वपूर्ण पड़ाव तय किए हैं। किन्तु मोहन राकेश का लेखन एक दूसरे ध्रुवान्त पर नज़र आता
है। इसलिए ही नहीं कि उन्होंने अच्छे नाटक लिखे, बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने हिन्दी नाटक को अँधेरे बन्द
कमरों से बाहर निकाला और उसे युगों के रोमानी ऐन्द्रजालिक सम्मोहक से उबारकर एक नए
दौर के साथ जोड़कर दिखाया। वस्तुतः मोहन राकेश के नाटक केवल हिन्दी के नाटक नहीं
हैं। वे हिन्दी में लिखे अवश्य गए हैं, किन्तु वे समकालीन भारतीय नाट्य प्रवृत्तियों के उद्योतक
हैं। उन्होंने हिन्दी नाटक को पहली बार अखिल भारतीय स्तर ही नहीं प्रदान किया वरन्
उसके सदियों के अलग-थलग प्रवाह को
विश्व नाटक की एक सामान्य धारा की ओर भी अग्रसर किया। प्रमुख भारतीय निर्देशकों
इब्राहिम अलकाजी, ओम शिवपुरी, अरविंद
गौड़, श्यामानंद जालान, राम
गोपाल बजाज और दिने न राकेश के नाटकों का निर्देशन कर उनका बहुत ही मनोरहर ढग से मंचन किया।१९७१ में निर्देशक मणि कौल ने इस पर आधारित एक फिल्म बनाई।
जिसको साल की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया। मोहन राकेश के नाटक आषाढ़ का एक दिन में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
को लेने पर भी आधुनिक मनुष्य के अंतद्वंद और संशयों की ही गाथा कही गई है। आषाढ़
का एक दिन में सफलता और प्रेम में एक को चुनने के द्वन्द से जूझते कालिदास एक
रचनाकार और एक आधुनिक मनुष्य के मन की पहेलियों को सामने रखा है। वहीँ प्रेम में
टूटकर भी प्रेम को नहीं टूटने देनेवाली इस नाटक की नायिका के रूप में हिंदी
साहित्य को एक अविस्मरनीय पात्र मिला है। राकेश के नाटकों को रंगमंच पर मिली
शानदार सफलता इस बात का गवाह बनी कि नाटक और रंगमंच के बीच कोई खाई नही है। अषाढ़ का माह उत्तर भारत में वर्षा ऋतु का
आरंभिक महिना होता है, इसलिए शीर्षक का अर्थ "वर्षा ऋतु का एक दिन" भी लिया जा सकता है। इसके अलावा राकेश
मोहन के उपन्यास : अंधेरे बंद कमरे, अन्तराल, न आने वाला कल। नाटक :
अषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे अधूरे और
कहानी संग्रह : क्वार्टर, पहचान, वारिस तथा अन्य कहानियाँ मुख्य हैं। उन्होने निबंध संग्रह परिवेश के अलावा मृच्छकटिक, शाकुंतलम का भी अनुवाद किया जो आगे चल कर विश्व विख्यात हुई
।
No comments:
Post a Comment