साहित्य अपने से पूर्व के
साहित्य के कुछ तत्वों, प्रतिमानों और अवयवों को स्वीकार कर और कुछ को अन्तर्भुक्त
करते हुए विकसित होता है। इस प्रकार साहित्य कला संस्कृति के इतिहास के प्रत्येक
काल, समय, क्षण कुछ न कुछ निरन्तर जुड़ाव के साथ वृद्धि होती रहती है।
यदि इस वर्ष की परिधि पर
साहित्य की गति देखे तो कही गति तेज तो कही बड़े हादसों के बीच कई दिनों तक
सिथिलता देखने को मिली। हंस पत्रिका के 25 साल पूरे होने पर लाठी के सहारे चलने
वाले राजेंद्र यादव का नामवर सिंह द्वारा उनका दोबारा जन्म कहलाना हंस पत्रिका को
नई ऊंचाइयां दिखाने जैसा साबित होता है। साहित्य के केंद्र कहे जाने वाले नामवर
सिंह ने हंस पत्रिका के संपादक राजेंद्र यादव की पसंशा करते हुए एवाने गालिब
आडिटोरिम के सभागार में हंस पत्रिका की रजत जयंती पर वक्तव्य में कहा कि जो हो
सकता है इससे किसी हो नहीं सकता, मगर देखो तो फिर कुछ आदमी से हो नहीं सकता। इस
वर्ष में यदि साहित्य के गलियारों से शीर्ष साहित्यकार या बड़े ओहदे वालों की बात
की जाए और उसमें सामंत राजेंद्र यादव, अशोक वाजपेयी, नामवर सिहं के अलावा रविंद्र
कालियां का नाम न लिया जाए तो यहां पर जातति होगी।
ललित कला अकादमी के अध्यक्ष
अशोक वाजपेयी की ताकत सांस्थानिक अधिक रही है। वो सत्ता के केंद्र के रूप में उभरे
है। उन्हीं की अकादेमी में 54 वीं अन्तर्राष्ट्रीय कला प्रर्दशनी 3 जून 2011 को
वेनिस द्वैवार्षिकी में भारतीय पवेलियन का सुभारम्भ हुआ। इसका सुभारम्भ करते हुए अशोक
वाजपेयी ने इस अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन में भारतीय उपस्थिति को ऐतिहासिक करार दिया।
संस्कृतिक सचिव जवाहर सरकार ने भारतीय प्रतिभागितो को अनुपस्थिति की उपस्थिति
बताया और कहा कि जब कला नित नए रूपों के साथ नई-ऩई निर्मितियों में प्रकट हो रही
है तो हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम उसे स्थगत करे और उसके सहकार को तैयार रहे।
इसके अलावा राष्ट्रीय चित्रकला शिविर वोलगाटी मैदान, कोची में 31 जनवरी से 6 फरवरी
तक किया गया। शिविर में स्लाइड प्रर्दशन, वार्ताएं, वाद-विवाद और व्याख्यान आयोजित
हुए। शिविर को बड़े स्तर पर आयोजित करने का एक मात्र उद्देश्य भारतीय प्रतीभा को
निखारना था।
इस साल दुनिया को अलविदा
कहने वाले मकबूल फिदा हुसेन, श्री लाल शुक्ल और इंदिरा गोस्वामी को भारतीय कला,
साहित्य और संस्कृति में बड़ी हानि को रूप में देखा गया। चित्रकार हुसेन ने अपनी
कला और रंग के माध्यम से कला, रंगमंच और संस्कृति के विभिन्न आयामों को उकेरने का
कार्य किया। कविता लिखने के शौकिन हुसेन ने लिखा था....
जब मैं रंग भरने लगू , अपने
हाथों में आसमां थाम लो।
क्योंकि मेरे कैनवस के
वितान का मुझे भी पता नहीं।।
भारत सरकार के पदश्री,
पदमभूषण तथा पद्मविभूषण अलंकारणों से अलंकृत हुसेन को बनारस हिंदु विवि, जामिया
मिलिया इस्लामिया और मैसूर विवि की ओर से डॉक्टरेट की मानक उपाधि प्रदान की गई।
जिनका 95 वर्ष की उम्र में 9 जून 2011 की सुबह लंदन के एक अस्पताल में निधन हो
गया।
ज्ञानपीठ पुरस्कार और पद्म
भूषण से सम्मानित तथा राग दरबारी जैसा कालजयी व्यंग्य उपन्यास लिखने वाले मशहूर
व्यंग्यकरा श्रीलाल शुक्ल का इस साल हुआ निधन साहित्य जगत में बड़ी हानि है। स्व.
हरिशंकर परसाई के बाद वह हिंदी के बड़े व्यंग्यकार थे। एक लेखक के रूप में उन्होंने
ब्रिटेन, जर्मनी, पोलैंड, सूरीनाम, चीन, युगोस्लाविया जैसे देशों की भी यात्रा कर
भारत भारत का प्रतिनिधित्व किया था। शुक्ल का पहला उपन्यास 1957 में ‘सूनी घाटी का सूरज’ छपा था और उनका पहला
व्यंग्य संग्रह ‘अंगद का पांव’ 1958 में छपा। शुक्ल ने आजादी के बाद भारतीय समाज में
व्याप्त भ्रष्टाचार, पाखंड, अंतरविरोध और विसंगतियों पर गहरा प्रहार किया था। वह
समाज के वंछितों और हाशिए के लोगों को न्याय दिलाने के पक्षदर थे।
गुवाहाटी में जमीदार परिवार
में जन्मी इंदिरा गोस्वामी असमिया ही नहीं यकीनन, सम्पूर्ण भारतीय साहित्य की एक
महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थी। इंदिरा जी एक लेखिका होने के साथ-साथ एक शांति दूत भी
थी। वो नहीं चाहती थी कि भटक रहे उल्फा में शरीक हुए नौजवान मारे जाए। इंदिरा को
याद करते हुए प्रसिद्ध लेखन और साहित्य अकादमी के पूर्व सचिव के. सच्चिदानंदन ने
कहा कि उनके लिखे गए उपन्यास, रचनाएं, स्त्रियों के बारे में उनकी वेदनाएं बहुत ही
प्रभावी थी। लोग उनको सुनना, पढ़ना पसंद करते हैं वो प्रगतिवादी विचारधारा की थी।
एक लेखिका के रूप में वो हमेशा जनता के साथ जुड़ी रही।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश के
राज्य कर्मचारियों को साहित्यक सेवाओं के लिए पं महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार
उप्र प्रशासन एवं प्रबंध अकादमी के अपर निदेशक हेंमत कुमार और सुमित्रा नंदन पंत
पुरस्कार उप्र पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड के अपर पुलिस अधीक्षक अखिलेश निगम
अखिल को 12 फरवरी 2012 को दिया जाएगा।
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