Monday 6 November 2017

जल पर पूंजीवादी व्यवस्था हावी ना हो

कहा जाता है, जल है तो कल है” और जल ही जीवन है
हकीकत यह है कि हम उस देश के, उस मांटी के लाल है, जो भाइचारें, आपसी सोहार्द, अतिथि देवों भव: आदि न जाने कितनी कहावतों को न केवल हमने बनाया है बल्कि उन्हें जिया भी है। हमारे जीवन में दोस्ती, अपनापन, प्रेम, दूसरों के प्रति आदर, सम्मान, उनकी सहायता करने में हमारी तत्परता हमेशा से हमारे खून में रही है।  
आज पूंजीवाद का बोल-बाला है। लोगों की पूंजीवादी लालसा और सोच ने मानव चरित्र को दूषित किया है। हमें पता है कि हमारी जरूरत कितनी है। हम कितने में आराम से रह सकते है, लेकिन अब यह सोच पुरानी हो चुकी है। आज जमाना मोटी कमाई करने वालो का है। अब हम बच्चों के चरित्र, उनके व्यवहार, उनके आचरण की बात नहीं करते। आज हमारे बीच से बच्चों में चरित्र निर्णाण और उससे उनकी पहचान मिटने लगी है। ''आज पहचान वही बनाता है जो ज्यादा कमाता है।''
पूंजीवाद सोच ने हम सबको एक दूसरे से अगल करने का काम किया है। आलम यह है कि व्यक्ति दूसरे व्यक्ति में अपनी कमाई खोजता है। जैसे- मार्केटिंग में कहा जाता है कि आज सफल वही है जो गंजे को भी कंघा बेच दे। मैं अपने शहर के उन चौहारों को देख कुंठित हो उठता हूं जिन चौराहों पर कभी नल हुआ करते थें। वह आज सूख गए है...। कराण उनका पानी नहीं.., ना ही जलस्तर है। बल्कि कुछ तथाकथित लोगों की करामात है। उन स्थानों पर यदा-कदा किराना की दुकान खुल जाने से कुछ छोटी मानसिकता वाले लोगों ने उन नलों को बली चढ़ा दिया है ताकि वह किसी प्यासे राही की प्यास न बुझा सके। ऐसे में पानी की बोलत की बिक्री के लिए न जाने कितने भारतीयों ने अपनों के मुहं से पानी की बूंद-बूंद को छीना है। मैं देखता हूं कि बहुत से ढ़ाबों पर अब नल नहीं मिलता, यदि होता है तो उसे ऐसा स्थान दिया जाता है कि उससे पानी न पिया जा सके। यह सोच हम भारतीयों की कभी थी ही नहीं और कभी हो भी नहीं सकती है, लेकिन जो बर्वादी का वातावरण हमारे लिए तैयार किया जा रहा है उसे मन की आखों से देखने की जरूरत है।

जल हमारे जीवन का लिए नैसगिंक हिस्सा है। यदि पुराने दिनों को याद करें तो चुनावी मुद्दों में भी एक मुद्दा नलकूपों को लगवाने, पियाऊ खुलवाने का हुआ करता है। हमारी बसों के अड्डे, रुकने का स्थान जल की व्यस्था के अनुरूप ही हीता था। जिन्हें सराय के नाम से जाना जाता है। यदा-कदा कुछ स्थान ऐसे होते थे जहां लोगों का आवागमन ज्यादा हुआ करता था वहां पर भी पानी की व्यवस्था के लिए लोगों की मांग नल लगवाने की ही हुआ करती थी। चाहे उसका खर्च स्वयं उन्हें ही वहन क्यों न करना पड़े। कुल सामाजिक लोगों ने शीतल जल मुक्त में मिले उसके लिए पियाऊ की भी व्यवस्था देश के लगभग हर शहर में देखी जा सकता है। जो आपसी सहयोग की मिसाल है। लेकिन पूंजीवादी सोच ने अब एकल वादी सोच और स्व-उत्थान की विचारधारों को रौपने का काम किया है जहां हम हर चीज़ में अपना स्वार्थ खोजने लगते है। ऐसे में एकल-वादी सोच हमारे संस्कार, सभ्यता और परिवार की परिधि पर प्रहार की तरह है जो केवल विध्वंस करना जानती है।
ऐसे में हम प्रत्येक को पूंजीवादी व्यवस्था से उभरना होगा। जनकल्याण या जनहित में छोटा कार्य ही सही... जरूर करना चाहिए। अच्छे लोगों की अभी भी कमी नहीं है ... जब हम अच्छा सोचेगे तभी तो अच्छा कर पाएंगे। इसी लिए स्वयं से शुरुआत करे। मैं यकीन दिलाता हूं आप को अच्छा जरूर लगेगा। 



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