Friday, 23 March 2012

‘छोटे’ किसान ....


शीर्षक पर ज्यादा ध्यान देंगे तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा। शीर्षक पढ़कर, आप सोच रहे होंगे कि लेखक बड़े व छोटे किसानों की बात कर रहे होंगें, लेकिन यहां पर छोटे एक ''नाम'' है जो कि एक किसान का बेटा है। यह नाम उसके परिजनों ने प्रेम से रखा है। वह अपने गांव में इसी नाम से जाना जाता है और गांव से बाहर उसकी अलग पहचान है। गांव से बाहर यह छोटे नाम से अमूमन अपने लोगों के बीच ही जाना जाता है। यह किसान बेटा जब भी किसी परिचित, दोस्तों से बात-चीत करता तो वह फर्क से अपना नाम छोटे बताते हुए। अपने घर पर निमंत्रण देना नहीं भूलता। गांव में छोटे नाम से पूरे गांव वासी परिचित हैं। यह नाम उनके लिए नया नहीं है। वह यह भी जानते है कि छोटे कोई किसान नहीं है, बल्कि गांव के बड़े परिवार से तालौकात रखता है। गांवासी छोटे को उसके बड़े परिवार की वजह से नहीं बल्कि उसके शांत, शालीन और मित्र व्यवहार के लिए जानते है।
छोटे किसान नहीं है....यह एक टाइटल है जोकि उसके गुरु जी प्रो. पी.के.पांडेय ने दिया है। छोटे को यदि हम दूसरे पक्ष से देखे तो छोटे इस मायने में किसान भी है क्योकि उसके पिता जी किसान हैं। छोटे अपनी गांव की छोटी गलियों से मेरठ शहर होते हुए, बड़े शहरों की गलियों तक परिचित है। छोटे का छोटे शहरों के बड़े मीडिया चैनलों से गहरा संबंध है। अब वह प्रिंट मीडिया में एक माध्यम है जो जनमानस को समाचार प्रेषित करने का जिम्मा उठाए हुए है। छोटे जब भी अपने गुरुजी से (गुरु जी के नाम का ऊपर जिक्र कर चुका हूं) मिलता तो गुरुजी छोटे से हमेशा पूछते है- ''छोटे अब तो तू किसान बन गया''। यह कोई संकयोग नहीं....यह एक सच्चाई है यह टाइटल गुरु जी की ही देन है। छोटे किसान...
छोटे के परिवार में माता-पिता के अलावा दो बड़े भाई भी हैं। छोटे अपने परिवार में सबसे छोटा और सभी का लाडला है। छोटे के भाई, माता-पिता सब इस पर जा लुटाते हैं। छोटे भी अपने छोटेपन की आड़ में तमाम सुविधाओं का आनंद लेता रहता है जो कि उसके किसान न होने की निशानी है।
इस टाइटल के मिलने के पीछे एक छोटी सी कहानी है... हुआ यू कि प्रो. पी.के.पांडेय जी को बैंकाक में उनके सीनेमा क्षेत्र में किए गए कार्यों पर उनकी कलम से लिखे गए लेखों को सम्मानित किया जाना था। उसी क्रम में पासपोर्ट बनवाने के लिए गुरुजी से बातचीत होती रहती थी। एक बार गुरुजी के पास बैठा हुआ चाय पी रहा था कि अचानक बैंक से फोन पर एक मेसिज आ गया। गुरुजी की उत्सुकता बढ़ी तो गुरुजी पूछ बैठे कि किसना मेसिज है जी....मैने कहा बैंक से.....गुरुजी बैंक से हंसते हुए......जी मेरा बैंक में खाता है जिसमें गन्न की फसल कटने पर कुछ राशि पिता जी के आशीर्वाद से आती रहती है। गुरुजी ने कहा किस बात की राशि आती है.....गन्ने की फसल की ....मैंने कहा (छोटे)...सर हंसते हुए छोटे किसान बन गया जी....
यह गुरु जी की कल्पना है जोकि एक सच्ची बात और वास्तविक क्रिया से भिन्न है। छोटे किसान तो नहीं है लेकिन है भी......गुरुजी की बातों में.......छोटे फावड़े का इस्तेमाल नहीं करता....वह कभी भैंसा बुग्गी दौड़ाता हुआ भी नहीं देखा गया। लेकिन गुरु जी हमेशा अपनी बातों में छोटे को ट्रैक्टर पर बिठा देते है..यादों के मैदान को बतियाते हुए खेत बना देते है....उसे जौत देते है....फसल भी बौ देते है....लेकिन फसल पकने पर गुरु जी से भेट नहीं हो पाती यही कारण है कि हर बार छोटे किसान की फसल यू ही खेत में लहराती रहती है...न तो उसे छोटे किसान कांटता है और न ही कभी गुरु जी उस फसल की कटाई का जिक्र करते हुए उसकी कटाई की बात करते हैं। हमेशा छोटे गुरू जी की बातों में किसान बन कर रहा जाता और गुरु जी उसे किसान बनाएं बिना कभी चैन से बैठ भी नहीं पाते...... 

गुरु जी की स्मृति में।।
© सुरेद्र कुमार अधाना
  

Tuesday, 20 March 2012

चुनी हुई पंक्ति.......

दुश्मनी का सफर, एक कदम-दो कदम।
तुम भी थक जाओगे, हम भी थक जाएंगे।।
  

छोटा कद बड़ा व्यक्तित्व....लिलिपुट जी

LILIPUT JI...
सिनेमा जगत के जाने माने हास्यकलाकार और सैकड़ों लोगों के चहरे  की मुस्कान कहे जाने वाले लिलिपुट जी से शनिवार यानि तीन मार्च 2012 की शाम। इंडियन फिल्म एवं टेलीविजन इस्टीट्यूट,मेरठ  में उनसे मुखातिब होने का मौका मिला। तो जाना कि कोई व्यक्ति अपने काम से इतना भी संतुष्ठ हो सकता है। न चहरे पर सिकन न कुछ खोने की चिंता, मस्ता मौला रहना। सभी को गुद-गुदाते देखना शायद उनके व्यक्तित्व में शामिल है।
 लिलिपुट जी एक छोटी कद काठी वाले हास्य किस्म के व्यक्ति है जो सोते, जागते, उठते,  बोलते, चलते, फिरते, लोगों से बतियाते वक्त कब किस बात को पकड़ ले कुछ पता नहीं। हर वक्त हर जगह लोगों के चहरे पर सदैव मुस्कान चाहने वाले एक छोटे कद में बड़े व्यक्तित्व की वें मिशाल हैं। बड़े- छोटो में न कोई फर्क न कोई बड़प्पन की दीवार। न मान सम्मान की इच्छा जब जैसा मन किया उस पल को जी लेने वाले व्यक्ति हैं लिलि जी । उन्हें देख ऐसा लगा कि वें हर पल को जी लेना चाहते है।जीवन के  हर पल,हर लम्हा में रंग भरना चाहते है। फकत एक छोटा का अरसा भी चुप रहना गवारन नहीं समझने वाले हर मॉमेंट को इंजाय करने की उनकी इच्छा लिए हमेशा इधर-उधर डौलने वाले लिलि जी को अपने बीच देख हम आज खुश हैं।
  सफलता का पैरामीटर और मंजिल का रास्ता उन्हें देख स्वयं को छोटा महसूस करने लगता है। कुछ अगल कर लेने की आशा और विश्वास भरी मुस्कान ......सालों से विरान पड़ी जड़ों की तरहा सावन आने पर हरे भरे भीगते हुए मौसम में खुशहाल मस्ती में झूमते हुए विशाल पेड़ की तरहा लगते है।जो कि गर्मी आने पर हजारों पथिक की  निस्वार्थ भाव से छांव दे थकान दूर करता है। ऐसे लोगों को देख हममें आत्मविश्वास कई गुना बढ़ जाता है। जिन्होंने अपनी कमजोरी को इतनी मजबूती से पेंश किया की वह हास्य का विषय न बन होकर एक पहचान बन गए। आप से एक छोटी मुलाकात हमारी बड़ी याद बन गई......
                                                                                                                -    सुरेंद्र कुमार अधाना 

अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष - 2023

भारत गावों का, किसान का देश है। भारत जब आज़ाद हुआ तो वह खण्ड-2 था, बहुत सी रियासतें, रजवाड़े देश के अलग-अलग भू-खण्डों पर अपना वर्चस्व जमाएं ...