Thursday 18 December 2014

बच्चों का क्या कसूर

पेशावर में तालिबान के आत्मघाती हमले में 132 बच्चों के मारे जाने की खबर मिली मन उद्वेलित हो गया। हर मानव जिस किसी को भी यह ख़बर मिल रही है, वह लम्बी आहें भर रहा है और यह सोच रहा है कि यह विश्व पटल पर क्या चल रहा है। नन्हें बच्चों से क्या किसी को कुछ मिल सकता है। क्या नन्हें बच्चें किसी को खटक
गूगल की सहायता से फोटो लिया है। - Google image
सकते है। क्या बच्चों का खून बहा कर बदला लिया जा सकता है। सैन्य स्कूल की इस घटना से समस्त जनता लम्बी सांसे भर-भर कर घटना को अंजाम देने वाले लोगों को कोस रहे है। बच्चे मन के सच्चे कहे जाते है। बच्चों से अपने तुच्छ स्वार्थों को अंजाम नहीं देना चाहिए। बच्चे हम सब के लिए एक समान है। उनकी कोई जाति, संस्कृति या धर्म नहीं होता। धर्म हमारा होता है और हम सब उनको अपने अनुरूप नाम, जाति और पहचान देते है। ऐसे में उनका कोई कसूर नहीं। हम मानव है और हर मानव का कर्तव्य है कि वह मानव जाति को जीने दे... बढ़ने दें..., अपने कर्तव्यों को पूरा करने दें...। माता-पिता चाहे कैसे हों वह अपने बच्चों का उज्जवल भविष्य चाहते है। हर मां-बाप बच्चों को प्यार करते है, दुलार करते है और कुछ अच्छा करने की प्रेरणा देते है। ऐसे में ये कुछ असामाजिक तत्व ना जाने क्यू। सामाज की आवो-हवा को बिगाड़ना चाहते है। बच्चे बड़ो की आंख का तारा होते हैं। किसी की आस होते हैं किसी का सहारा होते हैं किसी के जीने की आस होते हैं। किसी का सारा संसार होते हैं। ऐसे में उन्हों चोट पहुंचाने का मतलब शायद सोचा नहीं जा सकता है। यह सब करना ओछी और छोटी मानसिकता है। जिस को बदलने की जरूरत है। अधिकांश देश इस घटना को लेकर चिंतित हैं। पाकिस्तान में ही इसी घटना को लेकर कड़ा विरोध है और वहां तीन दिन का राष्ट्रीय शोक शुरू हो गया है। पाक. प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने वहा तीन दिन के लिए राष्ट्रीय शोक की वजह से पाकिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया है। साथ ही विश्व भर में ज्यादातर स्कूलों में सुबह की सभा में मौन रखा गया और द्विंगत आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थनाएं की गई है। इस घटना की भारत में कई प्रांतों में बड़ी भ्रत्सना की जा रही है। विभिन्न शहरों में लोगों द्वारा हमले की निन्दा की जा रही है।  लोग एकजुट होकर कैंडल मार्च निकाल रहे है। मानवता... मानव में जीनी चाहिए। नहीं तो यह नीच कार्य होते रहेंगे। यह व्यक्तिगत विषय नहीं है आंतरिक शुद्धिकरण का विषय है।


-सुरेंद्र कुमार अधाना।   

अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष - 2023

भारत गावों का, किसान का देश है। भारत जब आज़ाद हुआ तो वह खण्ड-2 था, बहुत सी रियासतें, रजवाड़े देश के अलग-अलग भू-खण्डों पर अपना वर्चस्व जमाएं ...