अंग्रेजों ने जिस स्तर पर चाहा हिन्दुस्तान के जनमानस का शोषण किया,
जिसका गुस्सा न केवल उत्तर भारत प्रांत में, बल्कि समूचे हिन्दुस्तान में पनप रहा
था।
10 मई 1857 का दिन उस विस्फोट का दिन है जो बारूद
अंग्रेजों के दिन-प्रतिदिन बढ़ते अत्याचारों के कारण पैदा हो रहा था। यह सर्व-विदित
है कि हिन्दुस्तान में अंग्रेज केवल व्यापार करने आएं थे। हिन्दुस्तान की आन्तरिक
व्यवस्था और अलग थलग पड़ी रियास्तों और हिन्दुस्तान के कुछ लालची रियायतों नें
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ हाथ मिला कर पहले अपनी हथेली, फिर हाथ, फिर शरीर, फिर
अपने रियासत ही नहीं वरन इसका खामियाजां सम्पूर्ण राष्ट्र को चुकाना पड़ा।
हिन्दुस्तान में गोरो के लालच ने यहां पनाह और न केवल पनाह आंतरिक कल्ह, आंतरिक
कमजोरी को परखने के बाद अपने विचार बदल लिए और फिर व्यापार, खेती के बहाने देश को
ही हड़प लिया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि गोरो ने हिन्दुस्तान के भोले लोगों का
फायदा उठाया वरन उनका सबकुछ हड़प भी लिया।
वह हिन्दुस्तान के इतिहास में काला दिन के रूप
में ही है जब अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान की धरा पर पैर रखा क्यों कुटिल लोगों के
आने हानि ही होती है। जो हिन्दुस्तान को लगभग 200 वर्षों तक चुकानी पड़ी।
इस वर्ष 2020 जब सम्पूर्ण विश्व नोबल कोरोना #COVID19 की चपेट में है ऐसे
में भारत के योगदान को भूला नहीं जा सकता है। हिन्दुस्तान ने बहुत ही संकट झेले है
और उन्हें पार भी किया है।
आप फिर वही दिन 10 मई 2020 हमें याद आता है कि
ठीक 163 साल पहले आज ही के दिन मेरठ से आज़ादी के पहले आंदोलन की
शुरूआत हुई थी। जो बाद में पूरे राष्ट्र में फैल गया। 85
सैनिकों के विद्रोह से क्रांति की जो चिंगारी निकली वह धीरे-धीरे ज्वाला बन गई। यह
सब एक दिन का साहस नहीं था, वरन् इसकी तैयारी लम्बे अर्शे से की जा रही थी, जरूर
थी सही वक्त की। इस रणनीति में नाना साहब, अजीमुल्ला,
झांसी
की रानी
लक्ष्मी बाई, तांत्या टोपे, मौलवी अहमद
उल्ला शाह और बहादुर शाह जफर आदि जैसे क्रांतिकारी नेताओं ने विभिन्न स्तरों पर
तैयारिया कर रखी थी। साथ ही विश्व स्तर पर गोरो के खिलाफ एक समूचा विरोध धीरे-धीरे
उफान ले रहा था जिसका वर्णन विश्व इतिहास में देखा जा सकता है।
बाद में गोरो द्वारा सैनिको को दिए गए गाय और सूअर की
चर्बी से बने कारतूस को चलाने से मना करने पर 85 सैनिकों के
कोर्ट मार्शल की दुखद घटना ने क्रांति की तत्काल भूमिका तैयार कर दी थी। कोर्ट
मार्शल के साथ उनको 10 साल की सजा सुनाई गई। बताते है कि 10 मई
को रविवार का दिन था। रविवार होने की वजह से अंग्रेजी सिपाही छुट्टी पर थे। कुछ
सदर के इलाके में बाजार गए थे। शाम करीब साढ़े पांच बजे क्रांतिकारियों और भारतीय
सैनिकों ने ब्रितानी सैनिक और अधिकारियों पर हमला बोल दिया। सैनिक विद्रोह में सदर,
लालकुर्ती, कैंट और रजबन के अलावा
अन्य क्षेत्रों में 53 से अधिक अंग्रेजों की हत्या कर दी ।
भारतीय पुलिस में कोतवाल सदर धन सिंह भी मौके
पर पहुंचे जिन्होंने वहा का मौर्चा संभाला। यह क्रांति रातों रात आस-पास के प्रदेशों
तक पहुंच गई जिसका कारण रहा कि मेरठ से शुरू हुई क्रांति दिल्ली समेत, पंजाब, राजस्थान, बिहार, असम,
तमिलनाडु
व केरल तक फैल गई। बाद के दिनों में अंग्रेजी हकूमत के पैर उखड़ने लगे, रोज़ खबर आने लगी
की अलग अलग प्रदेशों में अंग्रेजी हकूमत को लोग डट कर विरोध करने लगे है, अपने
अधिकारों के लिए खड़े होने लगे है। बाद के वर्षों में कई ऐसे नाम पर देखते है
जिन्होंने फ्रंट पर आकर लड़ाई लड़ी, लेकिन इस लड़ाई में कितने ऐसे गुमनाम सैनिक,
नेता, नेत्रित्वकर्ता, मजदूर, किसान, बेकसूर जनता लड़ाई की भेंट चढ़ गए। हमे
आज़ादी तो मिली लेकिन भारत माता का दामन लाल होकर, जो लाखों को लाल मां की गोद में
हम सब के खातिर चले गए और गुमनामी की नीद सो गए। आज मातृत्व दिवस पर उन सभी वीर
जवानों, मां के लाल को हम शत-शत नमन करते है।
#10_मई_2020
#मातृत्व_दिवस_2020
#क्रान्ति_दिवस_मेरठ