Monday 25 August 2014

शिक्षा देना और न देने की रेखा

अमुमन देखा गया है, कि भारत में बहुत से लोग अभी भी पढ़ने का शौक रखते है। बुढ़ापे में उच्च शिक्षा के लिए आवेदन कर देते है। बहुत से लोग इस ताक में भी रहते है कि किसी विवि से ये फला कोर्स कर लें... कभी-कभी कई बार और कई विषयों में डिग्री प्राप्त करने का भी शोक लोगों में देखा गया है, लेकिन इन सब के बीच कुछ चीजें ऐसी हो जाती है। जिस पर केंद्र सरकार या राज्य सरकारें मौन रहती हैं। किसी व्यक्ति के अधिकार का हन्न कभी भी कर दिया जाता है। राज्य स्तर की परिक्षाओं के मानये कभी राजनीति से छोटे पड़ जाते है और राजनीति सब पर हावी हो जाती है। उच्च शिक्षा का भी वही हाल है, सरकारें  जब चाहों तब दुनिया भर के उच्च शिक्षा हेतु आवेदन मांग लेते है कभी-कभी कई सालों तक छात्र धक्के खाते रहते है, लेकिन विवि के मामले नहीं निपट पाते है। शिक्षा लेने और देने के लिए कोई उम्र नहीं, लेकिन भारत जैसे देश में यह सब एक उम्र तक उच्च शिक्षा प्राप्त कर ली जाएं तो ही ठीक है, यहां सामाजिक चीजों से भी आदमी की जिंदगी प्रभावित होती है ऐसे में शिक्षा के मायने बढ़ने के बजाए घट जाते है।
शायद किसी सीएम ने यह ब्यौरा लगाने की कोशिश की होगी कि क्यों हम कितने लोगों के जीवन से जुड़ी बड़ी उम्मीदों को नौकरी न देकर दो मिनट में खत्म कर देते है। ऐसे  बड़े उदाहरण मिल जाएंगे। जो शिक्षा, उच्च शिक्षा और नौकरी के नाम पर अपनी आर्थिक कमर तोड़े हुए है। सरकारे हजारों रुपयों के आवेदन के रूप में लेकर करोड़ो की कमाई कर लेती है और उनका जो फायदा शिक्षा के रूप में मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता।  जब कोई सरकार किसी भी स्तर पर कोई परीक्षा करातीं हैं, तो उस परीक्षा के कुछ साकारात्म परिणाम होने चाहिए, लेकिन होता कुछ ओर हैं, हित चाहे जिधर भी मोड़ने की कोशिश हो, लेकिन गलत नियत से किए गए काम कभी सही नहीं आके जाते । जो सरकारें इस तरह के कार्य करतीं है परिणाम शीघ्र सामने होते है। सरकारें किसी भी स्तर पर कोई भी परिक्षा कराएं उसका लाभ लोगों तक पहुंचना चाहिए। यदि नहीं पहुंचता है तो वह सरकार के कार्यों पर प्रश्न चिंह्न के साथ एक गलत नियत की ओर भी इशारा करतीं है।   © एस.के.ए.

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