सूनी-सूनी सड़के पड़ी है, सूने है खेत।
चिड़ियां चहचाह रही है, कह रही यह देख।।
इंसान ने यह क्या किया है, सीमा कर ली पार।
जहां से वापस खुद आना, हो गया दुश्वार।।
अब देखे कैसा लग रहा है, यह प्यारा संसार।
जैसे हम रह रहे हो, किसी मानव जंगल के पार।।
सुंदर नदियां झर रही, प्रकृति का स्वच्छ नीर।
मानों जंगल में उत्सव मना रहे हो, पशु, पक्षी और शमशीर।।
दिन अब लगता है सुहाना, राते भी हो गई है गुलज़ार।
यदि मानव हद में रहे तो, कितना सुंदर है संसार।।
यदि मानव हद में रहे तो, कितना सुंदर है संसार।।
© सुरेंद्र कुमार अधाना
#जंगल , #प्रकृति #Nature #चिड़ियां #सुंदर #संसार #सुरेंद्र_कुमार_अधाना
रचना तिथि 28/04/2020
संशोधित 04/05/2020
चिड़ियां चहचाह रही है, कह रही यह देख।।
इंसान ने यह क्या किया है, सीमा कर ली पार।
जहां से वापस खुद आना, हो गया दुश्वार।।
अब देखे कैसा लग रहा है, यह प्यारा संसार।
जैसे हम रह रहे हो, किसी मानव जंगल के पार।।
सुंदर नदियां झर रही, प्रकृति का स्वच्छ नीर।
मानों जंगल में उत्सव मना रहे हो, पशु, पक्षी और शमशीर।।
दिन अब लगता है सुहाना, राते भी हो गई है गुलज़ार।
यदि मानव हद में रहे तो, कितना सुंदर है संसार।।
यदि मानव हद में रहे तो, कितना सुंदर है संसार।।
© सुरेंद्र कुमार अधाना
#जंगल , #प्रकृति #Nature #चिड़ियां #सुंदर #संसार #सुरेंद्र_कुमार_अधाना
रचना तिथि 28/04/2020
संशोधित 04/05/2020