जनतंत्र की जनता की आंख में
आंशू है। अब प्याज काटे तो भी और ना काटे तो भी। जनता जनतंत्र का मूंह ताक रही है।
एक टक देख रही हैं कि जिस तरह से पानी का एक-एक टैक लोगों को जल सुलभ कराता है।
ठीक उसी प्रकार आज-कल प्याज भी सुलभ हो रहा है। वह भी आप ही की जेब से यहां ज्यादा
संवेदनशील होने की आवश्यकता नहीं .... और तंत्र चलाने वाले दावा भी ठोक रहे है कि
सस्ता और स्वादिष्ट प्याज आप को सुलभ कराना अब सरकार का काम हो गया है। अभी तो
प्याज महंगा हुआ है आने वाले समय में आप को नींबू, शलजम, आंवल, बैंगन और न जाने
क्या-क्या भी आप के घरों तक सरकार लेकर आएगी इसकी तो कोई गारंटी नहीं लेकिन एक
गारंटी है कि 2014 में होने वाले चुनाव में यह प्याज बहुत काम आने वाली है।
आम आदमी भी अब आम नहीं रह
गया है। वह भी पार्टी का हिस्सा बन गया है। चाहे तो भी और न चाहे तो भी.....
क्योंकि नहीं भी तो आम पार्टी तो उसके नाम का झंडा थामे हुए है ही। आम आदमी का काम
आम आदमी पार्टी का काम और कर्म दोनों है। यह पार्टी के कार्यकर्ताओं की जुबानी है।
यदि आम किसान की बात करें जो इस प्याज का पितामह है वह भी 60-70 के चक्कर में पड़ा
हुआ है। ध्यान दिला दे कि प्याज बहुत ही जल्दी गलने-सड़ने वाली सब्जी है जिसका
लम्बें समय तक भंडारन नहीं किया जा सकता और आम किसान के पास इतनी व्यवस्था भी नहीं
होती है कि वह इसे महंगा होने तक किसी सुरक्षित जगह रख सके, लेकिन जमीनी हकीकत से
भी आंख-मिचौली खेले बिना बता दू कि किसान एक ऐसा प्राणी हो जो कि अपनी फसल को पकने
से पहने ही उसे बाजार तक ले जाने को उत्सुक होता है। ऐसे में छोटे और मंझोले किसान
तो उसी समय अपनी सामग्री को बाजार में बेच देते है। बड़े किसान आर्थिक रूप से
मजबूती का फायदा उठा लेते है। लेकिन आम आदमी की व्यथा बरकरार रहती है। अब प्याज
मंडी पहुंच जाती है। यहां पर या तो आढ़ती या सरकार इनकी खरीद कर लेती है और इनका
भंडारन कर लेती है। कुछ को इधर-उधर बेच दिया जाता है। सरकार को पता होना चाहिए कि
उसे बाजार को भी नियंत्रण करना है। ऐसे में गैंद किसी दूसरे लालची के पाले में
फैकने से बचना चाहिए जो कि इस बार शायद नहीं किया। इसी की वजह है कि आज प्याज हर
दिन की सुर्खियों में छाई हुई है। सभी बड़े अखबारों और न्यूज़ चैनलों में
बड़े-बड़े प्लेग या ग्राफिक्स का इस्तेमाल कर लोगों को प्याज दिखाने का प्रयास
किया जा रहा है कि जिन लोगों से प्याज दूर हो गई है वह अपने टीवी सेट पर दिख रही
प्यार को देख भर से ही काम चला लें।
सुरेंद्र कुमार अधाना, स्वतंत्र पत्रकार
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