Monday 8 February 2016

जनसंख्या और अधिकार

देश में कितनी जनसंख्या है। कितनी नित जनसंख्या रोज़ बढ़ रही है, क्यों बढ़ रही है ? कितनी प्रतिशत के साथ बढ़ रही है। इस बढ़ती जनसंख्या का कोई देश क्या करेंगा ? क्या कभी संसद में इस मुद्दे पर किसी साहसी व्यक्ति या जनसेवक ने सोचने की जुगत की। नहीं अभी तक तो नहीं और शायद आने वाले कई दश्कों तक इस समस्या पर कोई विचार भी शायद कोई राजनैतिक पार्टी करें। जनसंख्या बढ़ रही है इस पर सब अपने विचार देते है। क्यों बढ़ रही है। इसका जबाव भी हमारे पास है। और इस बढ़ती हुई जनसंख्या का क्या करना है और इस बढ़ती जनसंख्या का हम क्या करेंगे यह भी हम जानते है।

सरकार या राजनीति में आने वालो के लिए यह जनता ठीक इसी प्रकार है जैसे सरकार की किसी बड़ी कम्पनी में रोजगार पाना। अधिक जनसंख्या होने का मतलब है ज्यादा सीट और ज्यादा सीट का मतलब ज्यादा लोग इस प्रोफेशन में अपना हाथ आजमा सकते है। राजनेता जनसंख्या को शायद इसी आइने से देखते होंगे। राजनेताओं को पता है कि जनता क्या चाहती है, और राजनेताओं की जरूरत क्या है। हम सब एक दूसरे पर अपनी अपनी निहित कुछ जरूरतों के लिए जुड़े हुए है। हमारी जरूरते राजनेता पूरे करेंगे और हम राजनेता की रोजी रोटी के इंतेजाम के लिए अपना एक खोटा वोट बदले में दे देंगे। यहां पर भी चीजें नियोजित की जाती है। वोटों की राजनीति नहीं इन्हें नियोजित किया जाता है। कभी सुनेहरे अवसर देकर, कभी सुनेहरे लुभावने वादे देकर, वादें पुरानी फिल्मों में पूरे नहीं होते थे। लेकिन अब पैसा इतना आने लगा है कि कहा छुपाएँ। जहां कम होने के चलते कुछ पैसा लोग कल्याण में खर्च कर दिया जाता है। आज भी जनता इतनी मासूम है कि वह सोचती है कि चलो सरकार से कुछ तो मुक्त में मिला। क्या किसी की वोट की चोट में दम हो सकता है अभी भी जनता इस बात को नहीं जाती है। हां यह जरूर जानती है कि वोट मेरा हक है वोट मेरा अधिकार है जो मुझ से कोई नहीं छीन सकता है। वैसे तो किसी का कुछ भी छिन सकता है, जैसे घर, कार, खेत खलियान, जमीन कोई ना कोई छीन सकता है लेकिन वोट एक ऐसे अधिकार है शायद जिसे कोई नहीं छीन सकता है यही कारण है कि लोग वोट की चोट मारने के चक्कर में सारे दिन धूप, बादल या बारिश के बिना ही घंटो खड़े रहते है। जिन स्थानों पर जितनी कम जागरूकता है वहा उतनी ही बड़ी लाईन लगी मिलती है। इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि दूररस्त स्थानों पर जो वोट की लाईन लगती है वह अपने उम्मीदवार को जिताने के साथ-साथ अपने पहली वार मिले अधिकार को भी महसूस करना चाहते है कि वह उसे किस प्रकार महसूस कर सकते है। 

1 comment:

Unknown said...
This comment has been removed by the author.

अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष - 2023

भारत गावों का, किसान का देश है। भारत जब आज़ाद हुआ तो वह खण्ड-2 था, बहुत सी रियासतें, रजवाड़े देश के अलग-अलग भू-खण्डों पर अपना वर्चस्व जमाएं ...