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Photo- Google image/outlook |
कोई भूखा है, कहीं किसी नन्हें बच्चों ने जान गवाई है।।
मटमैला जन भटक रहा है, टुकड़े-टुकड़े जुटाने को।
कोई बिल्ख रहा है, कई दिनों से भूख मिटाने को।।
ईश्वर थोड़ा रहम करो, ज़रा देखों इस धरा की ओर।
हम सब है तेरे बंदे, कुछ थोड़ा ही सही ज़रा रहम तो करो।।
© सुरेंद्र कुमार अधाना
* कोरोना वाइरस से लड़ता भारत के दौरान की कविता इस अंदाज़ में प्रस्तुत इसलिए की गई है क्योंकि हाल ही में पाक के साथ सीमा पर लड़ाई, भारत के अंदर छत्तीगढ़ में नक्सलीय हिंसा में कई जवानों और भारत में कोरोना संकट से जुझते जवान और डाक्टर्स की टीम में से भी बहुत से हमारे अज़ीज शहीद हो गए है साथ ही पलायन की इस दुखद घड़ी ने मजदूरों, गरीब व बेसहारा जनमानस को छोटे-छोटे बच्चें से उनके हाथ का निवाला तक छीन लिया है।
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