Saturday 6 December 2014

भूख

भूख कई तरह की होती है। कई तरीकों से इसे परिभाषित किया जाता है। लेकिन बात पेट की भूख की हो रही है। भारत जो किसानों का देश कहा जाता है। किसान द्वारा ही सबसे ज्यादा पोष्टिक वस्तुएं ऊगाई जाती है। उन्ही के हाथों से होती हुए। पूरे भारत के लिए उपलब्ध होती है। क्या किसी न इस पर गौर किया कि किसान जो की सब्जी, फल, फूल का जो उत्पादन करता है वह स्वयं के लिए उन्हीं किस अनुपात में इस्तेमाल करता है या नहीं करता है। शायद हम इस पर गौर नहीं देेते है। जो ग्रामीण भूमि से इत्तेफाक रखते होंगे वो शायद इस मर्म को जानते होगें और कारण से भी परिचित होंगे। खेर अपनी बात पर आता हूं। भूख पर आज लिखने के लिए विषय कोई बहुत नया नहीं है बहुत कुछ इस विषय पर हो चुका है और मानव अधिकारों के लिए एक बड़ा मुद्दा भी है। बात ये है कि मैं जिस शैक्षिक संस्थान में पढ़ाता हूं वहीं बाहर घूम रहा था, फॉन पर किसी परिचित बात कर रहा था। तभी देखा की बिल्डिंग के ठीन नीचे बने पार्क बहुत अच्छी हरी-हरी घास उगी हुई थी और 48 साल की एक महिला उस घास को साफ कर रही थी पता नहीं क्यू मेरी नज़र उसके घास उखाड़े के तरीकों को देख रही थी, मैं कुछ समझ पाता तभी उस महिला ने हाथ की घास को मुहं में रख लिया और उसे खाने लगी। मैं देख कर भौचंग रह गया। मैं उस की भूख को समझ रहा था शाम लगभग 3.30 का समय होगा उस महिला को भूख लग रही होगी। किसी के यहां पार्क में घास साफ करने का मतलब है कि महिला की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं होगी।लेकिन जिस देश में 100 रुपये से अधिका का एक किलों पानी का मोल होने के बाद भी उसी जल को पीते है और वही देश का एक ऐसा तबका भी है जो अपनी पेट की आग को घास फूस से मिटा रहा है। मन उद्वेलित हो गया। कुछ पुरानी यादें एका-एक करके याद आने लगी गांव के कुछ लोगों की स्थिति पर मेरी यादें ताजा होने लगी। बात बहुत छोटी सी नहीं है। हम जब देश, दुनिया और अंतराष्ट्रीय विषयों की बात करते है और हमारे बगल में कोई भूखा मर रहा होता है। तो कैसा लगता है। हम अपने घरों की रसोई में बहुत सा सामान इस लिए डस्टबिन में फेक देते है कि उसमें से बदबू आ रही है। कुछ लोग उसे भी अपना लेते है। यह लोगों के हालात और मजबूरी पर निर्भर करता है। हम आस-पास के लोगों के पेट को नहीं समझे हम आए दिन अपने घर में बनी चीजों को पॉलिथिन में भर कर फेंक देते है। क्यों कि वह खराब हो चुकी होती है हम सब जानते है कि हर चीजं कुछ समय बात खराब हो जाती है यदि हम उसे इस्तेमाल नहीं कर पा रहे है उस चीजं को गलने, सड़ने और दूषित होने से पहले यदि किसी व्यक्ति को वह भेट कर दिया जाए तो उ,स का सुदुपयोग हो सकता है। जिसमें हम अपनी तेजी से भागती जिंदगी में शामिल नहीं कर पाते है। हम क्यों भाग रहे है कहा भाग रहे है, किसके लिए भाग रहे है। इन सभी पर विचार करने की जरूरत है। हम देश के नागरिक है हमारे कुछ कर्तव्य भी है उन्हें भी पहचाने और आगे बढ़ते रहे।
जय हिंद।। 

No comments:

अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष - 2023

भारत गावों का, किसान का देश है। भारत जब आज़ाद हुआ तो वह खण्ड-2 था, बहुत सी रियासतें, रजवाड़े देश के अलग-अलग भू-खण्डों पर अपना वर्चस्व जमाएं ...