Monday 26 March 2012

नीम का पेड़.....पहला पड़ाव


                हम हमेशा पाने की जद्दोजहद में लगे रहते है...कुछ पाना और फिर उसमें से कुछ खो देना सतत चलता रहता  है। कभी हताश होते है तो कभी कुछ करने की ठान लेकर पूरी  ऊर्जा के साथ काम में जुट जाते है...मगर कुछ कर दिखाने की ये ऊर्जा कहा से आती है ? यह थकान कौन मिटाता है ? पेड़ को भी क्या कोई छांव देता है ? कुछ ऐसे सी प्रश्नों को मैं अकसर नीम के पेड़ के नीचे बैठ कर सोचा करता हूं। मेरे ब्लाग का नाम नीम का पेड़ होने इसी का अंग है....जब ब्लाग बना रहा था तो कोई अच्छा सा नाम सूझ ही नहीं रहा था। खिड़की से हटे परदे की छोटी से झांकी (छोटा सा स्थान या छेद )पर नजर गई तो घर के आंगन में लगे नीम के हरे भरे पत्ते हिलते दिखाई दिए। एक दम से दिमाक में आडिया आया कि मेरा ब्लाग का नाम मेरा पेड़ या नीम का पेड़ होगा । जो मेरे मन को सदैव हरा-भरा रखता है। मुझे आप को बताते हुए खुशी हो रही है। कि मैंने अपने आंगन में छह नीम के पेड़ लगाए थे ...सभी के सभी पेड़ आज भी मेरा गांव के घर के आंगन की शोभा बढ़ा रहे है वह हमेशा हिलते-खेलते दिखाई देते से मालूम पड़ते है। जब भी गांव जाता उन हरे भरे पेड़ों को देख मन प्रफुल्लित हो उठता....नीम का पेड़ मेरा ब्लाग ही नहीं मेरी ऊपज है जिसे में अपनी भावना के खाद् और पानी से जीवंत रखना चाहता हूं.....
- सुरेंद्र कुमार अधाना..

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