माना गया है कि
परिवर्तन प्राकृति का नियम है। कुछ परिवर्तन खुद आते है। कभी-कभी परिवर्तन लाए
जाते है जैसा दिल्ली में आया। वह परिवर्तन प्राकृति का नहीं था, नियोजित था। जिसके
लिए सालों तक कड़ी तपस्या की गई और बदलाव की नयी परिभाषा गढ़ी। इससे सत्ता के नशे
का भ्रम टूटा है, नयी ऊर्जाओं को जनता ने चुनकर राजनीति की मुख्य धारा में लाकर
खड़ा कर दिया है। ऐसे में एक परिभाषा और बन कर ऊभरी है कि हमारा नेता कैसा हो। आम
आदमी जैसा हो। इस नारे के साइड-इफेक्ट क्यों होंगें वह तो कुछ महीनों बाद ही पता
चल पाएंगे, लेकिन हर चुनाव के दौरान लगाएं जाने वाले जय जयकार बदलाव की दहलीज पर
करहा रहा है और अपने आदर्श नेता को खोज रहा है। फिर भी दिल्ली में सत्ता परिवर्तन
की इस बयार ने और आम आदमी पार्टियों की हवा ने नेता की परिभाषा को समझने का प्रयास
जरूर किया है। जिसके चलते गृह मंत्रालय से भी कुछ जनकारियां इस रूप में आने लगी की
दिल्ली की सरकार को चलाने वाले सीएम को किसी बाहरी तंत्र से खतरा है। सो सीएम
जेड-श्रेणी की सुरक्षा को ओढ़ कर खुद को सुरक्षित कर लें। लेकिन इन सब को ढुकरा
देने वाले सीएम ने तंत्र को इस प्रकार हिला दिया कि पिछले महिने जो पांच राज्यों
में चुनाव के रिजल्ट आए थे। उनमें नमो (नरेंद्र मोदी) की जयजयकार होना तय था,
क्योकि पांच राज्यों में चुनाव हुए थे, जिनमें से तीन राज्यों में भाजपा की सरकार
बनी, एक राज्य में कांग्रेस की और दिल्ली में भी भाजपा से कम वोट हासिल करने वाली
पार्टी ‘आप’ ने वो कर दिखाया जो भाजपा तीन राज्यों में जीत कर चौथे राज्य में सबसे अधिक
वोट पाकर भी नहीं कर पाई। इसका सबसे बड़ा खामियजा नरेंद्र मोदी को हुआ। जब भाजपा
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए चमकाने का काम कर रही थी। उस समय बिना
किसी मेकअप के साफ छवि के चलते आम आदमी पार्टी चमक रही थी। ऐसे में कांग्रेस का
सर्मथन आम आदमी पार्टी को जनता के विश्वास को जीतने का बड़ा हथियार साबित हुआ और
आप राष्ट्र स्तर पर चमक गई। कांग्रेस की सही मायने में पीएम पद की दावेदारी के लिए
रह गई है। दिल्ली में अपनी छवि को धूमिल होते देख कांग्रेस को एक झटका तो लगा ही
है। लेकिन बड़े मैदान पर आकर कांग्रेस बड़ा खेल खेलने के लिए अपनी पुर्जोर ताकत के
साथ सभी मजबूत पेत्रे जरूर अपनाएंगी। कांग्रेस का “आप” को समर्थन देना भी उसकी ताकत में शामिल है, जो कि काले धन,
भ्रष्टाचार, जीडीपी, एफडीआई और अनेकों सदन
में लंबित पड़े बिलों को भुलाने के लिए एक हथियार के रूप में है। आप पार्टी को जिम्मेदारी
में डालकर कांग्रेस लोकसभा चुनाव में आगे निकलने की मंशा में है। लेकिन यह
कांग्रेसी मंशा और राहुल गांधी की छवि को पीएम पद के लिए कितना निखार पाती है ये
तो आने वाला वक्त ही बताएगा। आम आदमी पार्टी की लोगों की बीच जो विश्वास बना है,
पार्टी निखरी है उससे एक बात तो तय है कि बदलाब तेजी से नहीं धीरे से आंएगे लेकिन
जरूर आंएगे। पीएम पद के लिए दस सालों से भाजपा जो उम्मीदवार दे रही है, क्या वह
प्रधानमंत्री बन पाएंगे ? क्या कांग्रेस से ही जनता फिर प्रधानमंत्री चुनेगी ? या आम आदमी की फिर से जीत होगी, सवाल एक ही है
लोकसभा चुनाव 2014।
- सुरेंद्र कुमार अधाना, नूर नगर मेरठ
adhana_surender@yahoo.com
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