Sunday, 16 August 2015

कलाम साहब आप सदैव जीवित रहेंगे।

हम सब भौतिक वाद की आंधी दौड़ में अोंधे मूंह भागे जा रहे है। कहा जा रहें हैं... पता नहीं। आज सभी को सभी साधन चाहिए। चाहे उससे दूसरों को फायदा हो या ना हो लेकिन घर, परिवार और अपने हितों तक लोगों की मानसिकता बन गई है।  देश में यदि इस तरह के लोगों को खोंजोगे तो पाओं गे कि कुछ ही उदाहरण हमारे आस पास है। जो जीवन को जीते है। जो लोग जीवन को इंजाय करना चाहते है। उनका दूसरों से सरकार कम ही रहता है। डॉ. कलाम जो बड़े पदो पर रहे लोगों उनकी सम्पत्ति के बारे में जानना चाहते है। इसी जिज्ञासा के साथ मेरा भी मन करा की कुछ कलाम साहब के बारे में खोजा जाए। तो पता चला कि  आम जिंदगी में बेहद सरल रहेने वाले कलाम के पास न तो कोई जायदादा थी और ना ही कोई सम्पत्ति जिस पर विवाद या दावेदारी की जा सके। देश देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजेपी अब्दुल कलाम के पास सिर्फ चंद जरुरत की चीजें ही थी और बहुत ज्यादा भौतिक चीजें उनके पास नहीं थी। उनके पास जो चीजें थी उसमें 3200किताबें, एक रिस्टवॉच, छह शर्ट, चार पायजामा, तीन सूट और मोजे की कुछ जोड़ियां थी। हैरानी की बात तो यह है कि उनके पास पास टीवी, कार ,एयर कंडीशनर  और फ्रीज तक नहीं था। उन्होंने विलासितापूर्ण जीवन जीया और ना ही वह घोर अभाव में रहे । उनकी कमाई का मुख्य स्रोत वह रॉयल्टी था जो उनकी लिखी चार किताबों से उन्हें हासिल होती थी। उन्हें पेंशन भी मिलता था। गौर हो कि देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का निधन बीते 27 जुलाई को शिलांग में हुआ था। उनके पार्थिव शरीर को तमिलनाडु के रामेश्वरम में पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ 30 जुलाई को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया।
कलाम साहब आप सदैव जीवित रहेंगे। हमारी यादों में हमारी बातों में।।

Wednesday, 25 February 2015

हम अपनी जरूरत देखतें हैं बस

 छोटे से गमले में लगा हुआ है रबड़ का पेड़।
यदि गौर करे तो हजारों नज़रे इस तरह के पेड़ देख सकतीं हैं। जो किसी ना किसी चुन्ने से गमले में लगे होते है और अपने बढ़ने, फलने फूलने, खिलखिलाने, ऊचा उठने की गुहार लगाते से प्रतीत होते है। हम अपने आंगनों, घरों को, बालकनी को, घर की खिड़की को या खिड़की के सामने वाले झरोकों को सुंदर दिखाने, बनाने की जुगत में कुछ ऐसा कर बैठते है जो कि शायद आप को सुखदायी लगता हो लेकिन उस पेड़ की मंशा को जरूर महसूस करके देखे जो वह चाहता है। कभी देखा होगा कि गमलों में मिट्टी इतनी भर दी जाती है कि गमले में पानी की कुछ चंद यूनिट ही गमले में रह पाती है बाकी सब बह जाता है। हर पौधे की अपनी प्यास होती है। हर पौधा, पौधा नहीं रहता लेकिन अपने घरों के गमलों में लगे पेड़ पर गौर कीजिए जो पेड़ बनना चाहता है, लेकिन क्या बना हुआ है...... शायद पौधा यह समस्या ठीक उसी प्रकार है जैसे आप किसी चिड़िया के पंख कतर दे और फिर उससे उड़ने की उम्मीद करें। पेड़ हमेशा खुले वातावरण में पलता है, जीता है बढ़ता है। हम पेड़ो को छोटे-छोटे गमलों में कैद कर रहे है उसे बढ़ने से रोक रहे है। ऐसे में असहाय पेड़ या तो गमले को टूटने की गुहार लगाता है या इस पढ़े-लिखे इंसान पर भरोसा करता है कि एक दिन इसे जरूर पता चल जाएगा कि यह पैधे गमलों के लिए नहीं धरा के लिए बने है। जहां से वह खुद को जोड़कर बहुत विशाल, घना और बलवान बन जाता है। वह धरती माता के चरणों को स्पर्श करना चाहता है ताकि मां की ममतत्व को पाकर वह भी पल से, जी सके और हम जैसे इंसानों को भी जिन्दा रहने में हमारी मदद् कर सके। हमें अपनी गमला मानसिकता को तोड़ना होगा और अपने घरों के पेड़ के लिए जगह छोड़ना होगा। नहीं तो पेड़ भी नष्ट हो जाएंगा और मानव भी। ...... 

Thursday, 29 January 2015

कहते हैं जिंदगी एक सफर है...

जिंदगी एक सफर है और सफर में रहते हुए हम बहुत कुछ सीखते है। जब तक हम जीवित रहते है तब तक नित नूतन चीजों से रूबरू होते रहते है  और हर क्षण, हर रोज हम कुछ न कुछ बातों को दूसरों के सामने रखते है और बहुत सी बातों को दूसरों से ग्रहण करते हैं। हम अपने अस्तित्व को लेकर बहुत आगे जाना चाहते है। कई बार हम बहुत कौशिश भी करते हैं, कई बार हम बहुत कम प्रयास करने से भी हम वहां तक पहुंच जाते है। जहां की हमने कभी कल्पना भी नहीं की होती है। इस जीत के पीछे बहुत से लोगों का हाथ रहता है जिसे कुछ लोग भूल जाते है जबकि बहुत से लोग अपने अच्छे-बुरे दिनों को याद रखते है, जीवन में उस हर व्यक्ति का महत्व को समझते है जो किसी न किसी रूप से जुड़ा रहा। किसी भी एक व्यक्तित्व को बनने में गुरु, माता-पिता, भाई, बहन, दोस्त, सगे-संबंधियों और सहकर्मियों की भी अहम भूमिका होती है। कुछ लोग उत्प्रेरक का काम करते है, जब कि कुछ लोग मोटिवेशन का काम करते है, कुछ लोग जीवन में बहुत अहम बन जाते है। मेरे जीवन में भी कुछ ऐसे नाम जुड़े है जिनका महत्व कम समय के लिए रहा लेकिन अधिका प्रभावशाली रहा जैसे पूनम चौधरी जो कि एक दोस्त, बहन और सहकर्मी के तौर मैं उन्हें कह सकता हूं लेकिन कई जगह वह गुरू भी सिद्ध हुई, लोगों को पहचानने में मदद की और मेरा मार्ग दर्शन समय समय पर किया में पूनम का यह उपकार जीवन प्रयंत याद रखूगां। दूसरा व्यक्तित्व देवाशीष जो कि मेरे बड़े भाई जैसे है, लेकिन मेरे दोस्त भी है। जीवन में कुछ लोगों से जोड़ने और कुछ लोगों से दूरी बनाएं रखने का ज्ञान मुझे देवाशीष भाई से प्राप्त हुआ। देव भाई का हमेशा मेरा साथ देना, समय समय पर मुझे नई ऊर्जा के संचार के लिए, लम्बे-लम्बे लेक्चर देना सब अब याद आता है। पुष्पेंदर कौर का कम कद लेकिन बड़ा व्यक्तित्व मेरे समक्ष एक ऐसा उदाहरण है जिसमें में गागर समझता था, लेकिन वह तो विशाल सागर के रूप में हमें मिली। एक व्यक्तित्व में इतनी सारी खूबियां...... बाप रे बाप.... ऐसा कमाल की हर जगह अपनी छाप छोड़ना। नारी शक्ति का जीता जागता उहादरण। पुष्पेंदर जैसे लोगों से मिलकर लगता है कि धरा पर बहुत प्रभावशाली और अच्छे लोग भी हमारे बीच मौजूद है। एक ओर सुनिल कालिया सर भी कुछ ऐसा ही चहरा था जिसे याद कर के भी चहरे पर मुस्कान आ जाती है। कालिया सर, बड़े ही डाउन-टू-अर्थ थे। लिडरशिप क्वेलिटी से परिपूर्ण, अनुभवी और जितना बड़ा ज्ञान का भंडार उतने ही दूसरे से सीखने की लालसा लिए कालिया सर हर किसी से बड़ी ही सहजता से मिलते थे। संदीप महाजन साहब बहुत ही सधे हुए व्यक्तित्व है। उनसे मिलकर भी बहुत ही सुंखद महसूस होता है। बड़ी ही गर्मजोशी के साथ मिलने वाले संदीप जी भी मेरे स्मृति में सदैव बने रहेंगे। जसप्रीत कौर बहुत ही लगनशील और अपनी बात पर अडिग रहने वाली महिला के रूप में सदैव मेरी स्मृति में रहेंगी। जितने दिन भी उन्होंने हम सब के साथ काम किया सदैव एक सकारात्म माहौल बनाए रखा एक महिला का जो स्वभाव होता है उन सब से कही दूर उनका व्यक्तित्व बहुत से लोगों के मार्गदर्शन के लिए काम आया। संस्थान की ओर से बहुत अच्छे काम करने वाले व्यक्तियों में शामिल जसप्रीत बड़ी ही निष्ठा के साथ अपना काम किया करती थी। साथ में सभी के साथ एक अच्छा व्यवहार उनका बहुत ही सधा हुआ है जो कि हम सब को एक साथ कैसे रहे.... कि कला सिखाता है। सोनाक्षी एक छोटी सी बिल्कुल नयी सहयोगी के रूप में मेरे आफिस में जाइन किया था। देखने में बहुत ही साधारण सी लेकिन काम-काज में किसी पारागत व्यक्ति से कम नहीं। इनता अच्छा ग्राफिक तैयार करतीं थी। कि देखने वाले देखते रह जाए। बहुत ही उम्दा ग्राफिक डिजाइनर सोनाक्षी अपने मंजील की ओर उन्मुख है और जीवन पद के लिए अनेक-अनेक बधाई।
-    © सुरेंद्र कुमार अधाना

पूनम चौधरी (बाएं) प्रवक्ता आईएफटीआई, जसप्रीत कौर (प्रवक्ता, दीवान इंस्टीट्यूट), सुरेंद्र कुमार अधाना  (प्रवक्ता, सुभारती विवि), सोनाक्षी गुप्ता (ग्राफिक डिजाइनर), पुष्पेंदर कौर (प्रवक्ता, एल.पी.यूनिवसिटी)

Thursday, 15 January 2015

15 जनवरी है, यानि आर्मी दिवस।

आज 15 जनवरी 2015 है, यानि आर्मी दिवस। बहुत से लोग इस दिवस से परिचित नहीं होंगें, और हो भी तो कैसे। हमारी शिक्षा प्रणाली है ही ऐसी- जो बात काम आए या याद करने योग्य हो उसे तो किताबों में नहीं रखा जाता है। जो कभी काम न आए उन सब चीजों को रटाया जाता है। देश की जानकारी का विस्तार के लिए कोई पहल नहीं होती। सरकारी स्कूलों की दिवारों पर कुछ अच्छी कुटेश्न मिल भी जाती हैं, लेकिन निजी स्कूलों को उन सब से कोई सरोकार ही नहीं है। इन सब से ज्यादा उन्हें दीवारों के टेक्चर पर ज्यादा चिंता होती है। जानकारी या अच्छी बातों पर नहीं। हम इन्टरनेश्न स्कूल बना रहे हैं, लेकिन नेश्नलता से दूर हो रहे हैं। अपनी चीजों को भी हम जान नहीं पा रहे है, फिर भी ...... मैं सलाम करता हूं देश के हर उन सभी जवानों को जो हमें जानते नहीं। पर हमारी सुरक्षा में लिए दिन रात प्रयत्न करते हैं। वे सर्दी की सर्द रातों में, गर्मी के गरम दोपहरी में बिना किसी ढाल, छाल के सीमा पर चौकसी करते हैं। उन्हें मेरा शत-शत नमन।।। ------ सुरेंद्र कुमार अधाना

कौन किस की निगरानी करें

हम संहिता की बात करते हैं, अधिकारों की बात करते हैं, कानून की बात करते है। पुलिस, कानून, जज, न्यायालय की बात करते है और यह सब अपने-अपने अधिकारों की बात करते है। पत्रकार पत्रकारिता की बात करतें हैं और आम आदमी जब जरूरत मंद होता है। तो मजबूरी की बात करता है। जब कोई पेरेंट्स अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देना चाहता है तो उसी क्रम में अच्छी चीजों की आड़ में दूसरों की अधिकारों का हन्न कर अच्छा बनने का झूठा बनावापन करतें हैं। पुलिस काम करतीं हैं। जांच करतीं हैं। दूसरों को कानून का पाठ भी पढ़ातीं हैं और यातायात पुलिस... यातायात को सुचारू चलाने के लिए काम करतीं है और जब उन्हें मौका मिलता है तब वह सारे कानूनों को तार पर रख कर अपने अधिकार का गलत प्रयोग करने भी कभी-कभी कोई कसर नहीं छोड़ती है। यदि यह प्रयोग आम आदमी करना चाहे तो उसे कई सौ रुपये ढीले हो जाते है। कोई हेलमेट न लगाए तो जुर्माना, किसी पर डीएल नहीं हो तो जुर्माना। क्या पुलिस को यह स्वतंत्रता है कि वह कानून तोड़े और यदि कोई ओर आम आदमी इसकी गुस्ताखी भी करना चाहे तो उसे जुर्माना। यह कोई पहली बार नहीं की पुलिस व्यवस्था को मरोड़ती है और उसे गलत तरीके से प्रस्तुत भी करती है। बात इतनी नहीं कि खुद कोई ईमादार का सेरटिफिकेट दे रहे है, कोशिश कर रहे है कि सभी अपने अधिकारों का प्रयोग करें लेकिन गलन नहीं, कानून बराबर है, सभी को लिए व्यवहारिक तौर पर, लेकिन वास्तविकता कहा तक चलती है। यह सब दिख जाता है कैसे .... आप भी देखे और अपने जीवन में देखते रहे। यदी सही है तो ताली बजाएं और यदि गलत है तो आवाज़ उठाएं। 

अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष - 2023

भारत गावों का, किसान का देश है। भारत जब आज़ाद हुआ तो वह खण्ड-2 था, बहुत सी रियासतें, रजवाड़े देश के अलग-अलग भू-खण्डों पर अपना वर्चस्व जमाएं ...