Thursday 15 January 2015

कौन किस की निगरानी करें

हम संहिता की बात करते हैं, अधिकारों की बात करते हैं, कानून की बात करते है। पुलिस, कानून, जज, न्यायालय की बात करते है और यह सब अपने-अपने अधिकारों की बात करते है। पत्रकार पत्रकारिता की बात करतें हैं और आम आदमी जब जरूरत मंद होता है। तो मजबूरी की बात करता है। जब कोई पेरेंट्स अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देना चाहता है तो उसी क्रम में अच्छी चीजों की आड़ में दूसरों की अधिकारों का हन्न कर अच्छा बनने का झूठा बनावापन करतें हैं। पुलिस काम करतीं हैं। जांच करतीं हैं। दूसरों को कानून का पाठ भी पढ़ातीं हैं और यातायात पुलिस... यातायात को सुचारू चलाने के लिए काम करतीं है और जब उन्हें मौका मिलता है तब वह सारे कानूनों को तार पर रख कर अपने अधिकार का गलत प्रयोग करने भी कभी-कभी कोई कसर नहीं छोड़ती है। यदि यह प्रयोग आम आदमी करना चाहे तो उसे कई सौ रुपये ढीले हो जाते है। कोई हेलमेट न लगाए तो जुर्माना, किसी पर डीएल नहीं हो तो जुर्माना। क्या पुलिस को यह स्वतंत्रता है कि वह कानून तोड़े और यदि कोई ओर आम आदमी इसकी गुस्ताखी भी करना चाहे तो उसे जुर्माना। यह कोई पहली बार नहीं की पुलिस व्यवस्था को मरोड़ती है और उसे गलत तरीके से प्रस्तुत भी करती है। बात इतनी नहीं कि खुद कोई ईमादार का सेरटिफिकेट दे रहे है, कोशिश कर रहे है कि सभी अपने अधिकारों का प्रयोग करें लेकिन गलन नहीं, कानून बराबर है, सभी को लिए व्यवहारिक तौर पर, लेकिन वास्तविकता कहा तक चलती है। यह सब दिख जाता है कैसे .... आप भी देखे और अपने जीवन में देखते रहे। यदी सही है तो ताली बजाएं और यदि गलत है तो आवाज़ उठाएं। 

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