Sunday 15 September 2019

आज दूरदर्शन ने पूरे किए 60 साल

15 सितंबर 1959 में आज ही के दिन सरकारी प्रसारक के तौर पर दूरदर्शन की स्थापना हुई थी। भारत में दूरदर्शन का पर्याय टेलीविजन ही हैं। जबकि टेलीविजन शब्द को देखे तो वह दो शब्दों से मिलकर बना है टेली + विजन, जिसका अर्थ है दूर के दृश्यों का आँखों के सामने उपस्थित होना या दूर बैठे दर्शन करना है। तकीनिकी रूप से देखे तो दूरदर्शन रेडियो में प्रयुक्त होने वाली प्रोद्योगिकी का ही उन्नत रूप है। विश्व में टेलीविजन का सबसे पहला प्रयोग ब्रिटेन के जॉन एल. बेयर्ड ने 1925 में किया था।
भारत में टेलीविजन के इतिहास की यात्रा दूरदर्शन के इतिहास से ही शुरू होती है। आज भी दूरदर्शन का नाम सुनते ही अतीत की बहुत सी पुराने यादें ताज़ा हो जाती है है। आज भले ही टी.वी. चैनलस पर कार्यक्रमों की बाढ़ सी आ गई हो, लेकिन दूरदर्शन की पहुंच को टक्कर दे पाना अभी भी किसी के बस की बात नहीं है। दूरदर्शन ने लोगों के घरों में नहीं दिल में राज किया है। जिसकी घुसपैठ घरों तक नहीं सीधे दिल पर तस्तक देने वाली है। आएंये याद करते है उन कुछ गौरव पलों को उन तिथियों को जो हमारे टीवी के इतिहास को ताज़ा करतीं हैं।
दूरदर्शन की स्थाुपना साल 15 सितंबर 1959 को हुई थी। दूरदर्शन से 15 अगस्त 1965 को प्रथम समाचार बुलेटिन का प्रसारण किया जो आज-तक जारी है। 1975 तक यह सिर्फ 7 शहरों तक ही सीमित था बाद में धीरे- धीरे इसके विस्तार और विकास को और तीर्वता प्रदान एसआईटीई SITE प्रोजेक्ट के माध्यम से मिली। दूरदर्शन की विकास यात्रा प्रारंभ में काफी धीमी रही लेकिन 1982 में रंगीन टेलीविजन आने के बाद लोगों का रूझान इस ओर ज्यादा बढ़ा। इसके बाद एशियाई खेलों के प्रसारण ने इस दिशा में क्रांति ही ला दी और इसी साल न केवल रंगीन टीवी आया साथ ही राष्ट्रीय प्रसारण भी प्रारंभ हुआ जो सबसे बड़ी उपलब्धी थी। बाद में हम पाते है कि दो राष्ट्रीय और 11 क्षेत्रीय चैनलों के साथ कुल दूरदर्शन के कुल 21 चैनल प्रसारित होते हैं, 14 हजार जमीनी ट्रांसमीटर और 46 स्टूकडियो के साथ यह देश का सबसे बड़ा प्रसारणकर्ता बन जाता है। हम लोग, बुनियाद, रामायण, महाभारत जैसे कार्यक्रमों ने दूरदर्शन की लोकप्रियता को बुलंदियों पर पहुंचाया साथ ही जन-जन को टेलीविजन से जोड़ने का काम किया।
एक दौर था जब दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते थे। छोटे से पर्दे पर चलती बोलती तस्वीरें दिखाने वाला बिजली से चलने वाला यह डिब्बा लोगों के लिए कौतुहल का विषय था। जिसके माध्यम से देश की कला और संस्कृति को लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाता था। दूरदर्शन सरकारी प्रसारण सेवा का एक अभिन्न अंग था।
दूरदर्शन ने देश में तब तहलका मचा दिया था, जब 1986 में श्री रामानंद सागर की 'रामायण' और श्री रवी चोपड़ी की ‘महाभारत’ की शुरुआत हुई। प्रसारण के दौरान हर रविवार को सुबह देश भर की सड़कों पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसर जाता था। इस कर्यक्रम को देखने के लिए लोग की भारी संख्या में भीड़ उमड़ जाती थी। लोग सड़कों पर उस समय यात्रा नहीं करते थे। ये बात आज के युवाओं को भले ही अटपटी लगे लेकिन ये सत्य है कि इस कार्यक्रम के शुरु होने से पहले लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करके अगरबत्ती और दीपक जलाकर रामायण का इंतजार करते थे और एपिसोड के खत्म होने पर बकायदा प्रसाद बांटते थे। यह टीवी का प्रेम और आदर वाली भावन केवल दूरदर्शन ने ही पैदा की जो शायद भुलाई नहीं जा सकती।

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