पूरा देश जब 2019 की दीपावली मना रहा था, उस समय बहुत से पर्यावरणविद्,
समाजशास्त्री, जागरूक जनता चिंता में थी कि फिर वही होने वाला है जो पिछले तीन चार
सालों से होता आ रहा है। भारत देश का केन्द्र या यू कहे कि दिल वालों की दिल्ली की
सांस फूलने वाला है। यह एहसास दिल्ली और दिल्ली से सटे क्षेत्रों ने पहले भी झेल लिया
है और महसूस भी कर लिया है लेकिन इसके परिणाम इतने भयानक हो सकते है या यह दिल्ली
के आस-पास स्थिति स्थानों तक जा सकता है इसकी चिंता शायद राजस्थान, उत्तर प्रदेश,
हरियाणा के दिल्ली से सटे जिलों के वासियों ने सोची नहीं होगी। यह मुद्दा केवल
दिल्ली से जुड़ा हुआ नहीं है जब कोई ख़बर विश्व के दूसरे सबसे आबादी वाले देश की
बात हो तो साथ ही ऐसे क्षेत्र की बात हो जहां जनसंख्या घनत्व जरूरत से ज्यादा हो
तो ऐसे में चिंता बढ़ जाती है साथ ही विदेशी पटल पर भी इसका गहरा असर होता है।
जब हम प्रदूषित जल, प्रदूषित थल से निकल कर प्रदूषित वायु तक जा पहुंचे
तो समझ लीजिए कि अब जीविन आसान नहीं है। जीवन को विकसित करने और उसे बनाएं रखने के
लिए पहले हम चिंतित नहीं थे लेकि अब हमे जीविका को बचाने और जीने के लिए विकल्प
खोजने होंगे।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हम अपनी पीढ़ी को प्रदूषण विरासत में
देकर जाने वाले है जिसके लिए उन्हों न केवल अपना तन, मन, धन लगाना होगा बल्कि कई
पीढ़ी इसके विकल्पों और उस पर काम करने की बड़ी कीमत भी चुकानी होगी। ईटली देश के बहुत
ही खूबसूरत शहर वेनिस में एक सप्ताह में तीन बार बाढ़ आना और शहर का लगभग 5 फीट तक
जलमग्न हो जाना । इसबात का मजबूत इशारा है कि यदि पर्यावरण के साथ और अधिक खिलवाड़
किया गया तो परिणाम बहुत भयानक होंगे और हमारी आपकी पीढ़ी के साथ ही होंगे।
पर्यावरण में प्रदूषण घौलने और कार्वन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के
लिए विश्व स्तर पर लगभग 25 सालों से गंभीर कार्य किए जा रहे है, लेकिन इस आधुनिकता
और उन्नत जीवन शैली ने हमारे आसपास के आवरण को अपनी जरूरत के हिसाब से उम्मीद से
ज्यादा दोहन किया है और किया जा रहा है। जिसका परिणाम है कि हमारे द्वारा उत्पन्न
की गई समस्याएं हमारे सामने आकर खड़ी हो गई है जिसका खामियाजा सम्पूर्ण धरा को
भुगतना होगा, बस शुरूआत और अंत में थोड़ा वक्त लग सकता है।
मानव जाति इस धरा पर सबसे अधिक समझदार मानी गई है और शादय हम ही जिसके
इसके गंभीर भविष्य के परिणामों की भनक है फिर भी हम दिन-प्रति-दिन अपनी धरा को दूषित
करते जा रहे है। सरकारें को जिस गंभीरता से इन मुद्दों पर काम करना चाहिए शायद वह
नहीं हो पा रहा है जन मानस की मंशा को समझते हुए और दूसरे विकल्पकों का ध्यान रखते
हुए हमें धरा की रक्षा के लिए दिन रात काम करना होगा तभी संभव है कि हम आने वाली त्रासदी
से बच सके।
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