Wednesday 22 April 2020

हम सबको सचेत होना का दिन 22 अप्रैल "पृथ्वी दिवस "

महाकाव्यों में भी कहा गया है कि हमे पर्यावरण और धरती का मात्र उतना ही दौहन करना चाहिए जितना हमारी आवश्यकता है। हमें जंगलों को उतना ही कांटना चाहिए, जितना हमें हकीकम में चाहिए, हमें विकास इतना करना चाहिए ताकि हम अपना भी विकास कर सके और पर्यावरण के बीच संतुलन भी बना रहे, लेकिन बड़ी समस्यां यह है कि जब सर्दियां आती है तो लोग इस जुगत में लग जाते है कि बहुत सर्दी है हमें जलाने की लिए लकड़ी चाहिए, जब बरसात होती है तो हम चिंतित हो जाते है कि कहीं बाढ़ आ जाती है, और सेकड़ों लोग पलायन की कगार पर आ जाते है साथ ही बहुत बड़े भाग में पेड़-पौधे, वनस्पति नष्ट हो जाती है। जब गर्मियां आती है तो पेड़ धरती गर्म हो जाने के कारण उग नहीं पाते या जो छोटे पेड़ होते है वह मर जाते है। 
फोटो आभार - गूगल इमेज।।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकार ने बहुत से ऐसे पेड़ है जिनपर कांटने की पाबंदी लगाई हुई है, लेकिन दूर दराज और जंगलों में इन सब की निगरानी रख पाना सरकार की बसमें भी नहीं है। करोड़ों जन मानस पर ऐसे निगरानी अखिर कब तक रखी जा सकती है। 
पर्यावरण के विनास का सबसे बड़ा कारण है हमारी लाभ की इच्छा और विकसित होने की दोड़ में हमारी तेज गति होना। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि विकास हमारे जीवन को सरल बनाता है हमें हजारों सुविधा उपलब्ध करता, हमारी यात्रा सुगम करता है लेकिन फिर भी कही ना कही तो हमको अंतिम रेखा अंकित करनी होगी। 
हमारे भारत में कई ऐसे शहर हैं जहां की हवा भी ज़हर के बराबर है, जिससे सुधारने के तमाम प्रयास न तो हवा की गुणवत्ता को सुधार पाएं है और न ही वहां के आस पास के वातावरण को। इसमें में सबसे ज्यादा सहभागिता हमारी ही है और जब तक हमारे हाथ इसके संरक्षण के लिए नहीं उठेंगे तब तक समस्या हू-बा-हू बनी रहेगी। भारत  की जनमानस या यू कहें कि हमारी परवर्शिर बचपने से ही ऐसी ही होती आई है कि हम किसी भी चीज़ की जीम्मेदारी नहीं ले पाते, और देश अहित में हम कितने दण्ड कर बैठते है हमे खुद ही पता नहीं चलता।
चलों जानने का प्रयास करते है यह सब क्या है- 
1. सुबह जब जागते है तो सबसे पहले हम फ्री में प्रकृति से पानी पाते है जिससे हम हाथ-मूह धोना, स्नान करना, गाड़ी, कार, मोटरसाईकिल, साईकिल धोते है और बहुत सारा पानी यू ही वहा देते है। 
2. हमारे घरों में जो गंदगी होती है उसको हम नगर निगम के डस्टबिन में न डालकर सड़क के  किसी किनारे फैंक देते है। 
3. यदि हमारे घर में बच्चे है और वह किसी सार्वजनिक पार्कों में जाते है तो बहुत सी खाने-पीने का सामान लेकर जाते है उसमें से खाते है और उसके पैकिट वही फैंक देते, बोतल वही छोड़ देते है। 
4. हम किसी सार्वजनिक पार्क की देख भाल नहीं करते, साथ ही जो अपनी जरूरत को होता है उसे नौंच जरूर लेते है। 
5. यदि हम किसी सार्वजनिक यातायात का इस्तेमाल करते है तो सीट नौच देते है, कुछ खाते-पीते समय उसमें गंदगी छोड़े देते है कुछ लोग बाहर सड़क पर फैंक देते है। 
6. यदि हम अपनी कार से कही जा रहे है तो ऐसा बहुत कम होता है कि हम खाने-पीना के पैकेट कार में छोड़ दे उसकों आप तुरंत के तुरंत साफ करते रहते है साथ ही फलों के छिलके, ठंडा पेयजल, पानी की बोतल, या नमकीन आदि का पैकट तुरंत ही सड़क पर फैंक देते है।
7. हमको लगता है नाले तो गंदे ही होते है गंदगी उसमें डालने से कुछ नहीं होगा, लेकिन आप को पता है कि इससे क्या होगा।
8. हम नदियों में शोच, घर-पूजा की बची चीजें, मूर्ति आदि नदियों में प्रवाहित करते रहते है।
9. पेड़ो से लगाव कम करते है साथ यदी वह हमारी किसी प्रकार की बांधा उत्पन्न करता है तो हम उसे कांट डालते उसके उन्य विकल्प के बारे में कम सोचते है। 
10. फलदार पेड़ फल भी देते है और मानव का असबसे अधिक शोषण भी सहते है कोई उनके फलों के लिए पत्थर मारता है तो कोई द्वेष में उन्हें कांट तक देता है। कई उदाहरण मैंने अपने आंखे से देखे है। 
हम पेड़ों, फल- फूलों, जल स्त्रोतो, धरती आदि पर अपना अधिकार जताना जानते है, लेकिन उनको पालना नहीं जानते, उनकी जरूरतों को नहीं जानते, उनके श्रृंगार को नहीं जानते, उनके मन को नहीं जानते!!
और जानेगे भी तो कैसे हमारी संस्कृति में, हमारे समाज में, हमारे परिवेश में, हमारे मनोरंजन के साधन में पर्यावरण, धरती, मिट्टी, फल-फूल, धरती की खुशबू कही खो गई है। जिसे हमें पुन: जीवित करना होगा। प्रकृति से प्रेेम करना होगा। फूलों के रंगों को खूशबू को महसूस करना होगा, कीट पतंगो, चिड़ियों और कोयलों के स्थान को उन्हें लौटाना होगा।
धरती का श्रृंगार तब तक अधूरा है जब तक मानव, जानवर, पक्षी, कीट-पतंगे, जंगल, पेड़, पौधो, फूलों, पहाड़ों, तालाब, नदी, झरनों, समुंद्र, धरती, मिट्टी आदि सब का मेल ना हो। सब का अपना संगीत है और मूल संगीत मूल होता है, वातावरण के साथ ही मिटता और पैदा होता है। हम मानव आगे निकल आएं है हमें पीछे जाने की जरूरत नहीं है लेकिन जो पीछे रह गया है उन सबको साथ ले लेंगे तो ऐसे में धरता का श्रृंगार भी पूरा हो जाँएगा और हमारा जीवन का सतुंल।

© Surender kumar Adhana

#जंगल #पृथ्वीदिवस22अप्रैल  #पहाड़   


#नीमकापेड़
    

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