Saturday 14 September 2013

साम्प्रदायिक सद्भावना हम सब की जिम्मेदारी


साम्प्रदायिक तनाव के दंश ने न केवल मुज़्फ़्फ़रनगरवासियों को बल्कि आसपास में स्थित कई जिलो को भी प्रभावित किया है। इस प्रकार की घटनाओं ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है, कि हिंसा कभी भी छोटी या बड़ी नहीं होती। जितने अशांत दिमाग इसमें जुड़ जाते है, यह और बड़ी/विशाल होती चली जाती है। इसका प्रमाण भी सर्वज्ञ है, उत्तर भारत के जिलो में कुछ ऐसे गांव हैं जो कि हमेशा से ही विवादों से रहे है। जिनकी पहचान, उनके कारनामें से जानी जाती है। उन गांवों के नाम पहले से ही पुलिस-प्रशासन की फाइलों में दर्ज है। ऐसे स्थानों को राज्य सरकार हमेशा से ही अपनी निगरानी में रखती है, ताकि सीधा सम्पर्क साधा जा सके और प्रशासन को जल्द इक्त्ला कर माहौल को नियंत्रण में लिया जा सके। ऐसे में प्रशासन की दूरदर्शिता पर सवाल करना ठीक नहीं होगा। लोगों में अशांति किस कारण है इस पर गौर किया जाना आवश्यक है।
मुज़्फ़्फ़रनगर में जो माहौल पैदा हुआ और जिस तरह से वहां कार्यवाई की गई। उसे ज्यादा शक्ति के साथ लेने कि आवश्यकता थी, लेकिन विवाद इतना तूल पकड़ेगा। इसकी जानकारी न तो मुज़्फ़्फ़रनगर प्रशासन को थी और न ही पंचायत में शिरकत कर रहे मुखयाओं को। स्थिति इतनी गंभीर भी नहीं होती। यदि पंचायत के बाद ये उपद्रवी तत्व सक्रिय न हुए होते। ये असामाजिक तत्व कहां पनपते है ? क्या करते है ? कहां जाते है ? और किन क्रियाओं में लिप्त होते है ? इन सब की जानकारी पड़ौस में रहने वाले लोगों को जरूर होती होगी। लेकिन किसी कारणों के चलते इन्हें दबना या छुपाना कितने हद तक नुकसान देह हो सकता है। इसकी कल्पना से भी डर लगता है। ऐसे में हम सब की जिम्मेदारी बनती है कि हम एक आदर्श नागरिक की तरह कार्य करें। आस-पास कुछ असामाजिक हो रहा है। तो उसकी सूचना व्यवस्था को दें। समाज आप से बनाता है। ऐसे में प्रत्येक जन की जिम्मेदारी बनती है कि वह अमन–चैन बनाएं रखे और यदि कोई व्यक्ति इन सब के विपरीत होता है तो उस पर सख्ती की जाएं।
मुज़्फ़्फ़रनगर के बाद मेरठ में भी कई दिन तक तनावपूर्ण माहौल रहा। कई दिनों तक स्कूल-कॉजिल बंद रखे गए। एक निर्दोष बच्चे को हिंसा का हिस्सा बना लिया गया। अमन-चैन बनाएं रखने के लिए बच्चे के पिता राकेश कौशिक ने रुंधे हुए गले से लोगों को समझाते हुए कहा कि पथराव और हंगामा करने से मेरा करन वापस नहीं आएगा इसलिए आप शांत हो जाए। ऐसे में हमें इन लोगों से सीखना चहिए जो समाज के लिए आर्दश है, जो हर कीमत पर एकता, सद्भाना और अमन चाहते हैं।
 हमें सोचना चाहिए कि हम कैसे समाज का निर्माण कर रहे हैं। देश के अधिकांश लोग यह कतई नहीं चाहते कि माहौल खराब हो। उसके अपनों का खून बहे। आम व्यक्ति की अपनी समस्याएं हैं, उसके अपने दर्द हैं, घर परिवार है। इन चीजों को व्यवस्थित करने में ही वह अपना जीवन गवा देता है। प्रत्येक साम्प्रदायिक घटनाओं में आम व्यक्ति ही पिस्ती है। दंगे-फसाद में उनकी रोजी-रोटी छिन जाती है। ऐसे में खुद को संकट में डाल कर ये व्यक्ति असामाजिकता नहीं फैला सकते। बात स्पष्ट है कि असामाजिकता सोची समझी साजिश है। दंग-फसादों से पूरा क्षेत्र पिस्ता है। जिले की छवि खराब होती है। राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय पूंजी जो विकास के लिए लगनी होती है, वह खराब माहौल के कारण प्रभावित होती है। मेरठ शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है लेकिन असुरक्षा के इस माहौल से प्रतिकूल प्रभाव तो पड़ेगे ही। ये कुछ ऐसे तत्व है जो विकास की गति को धीमी कर उस क्षेत्र को कई साल पीछे धकेल देते है। जिसकी भरपाई के लिए कभी-कभी दश्कों लग जाते है।
किसी भी विशाल राष्ट्र में छोटी-मोटी घटना तो होती ही रहती है। जब ये छोटी-मोटी घटना ही बड़ी साम्प्रदायिक वारदात में बदल जाती है, तो चिंता का विषय बना जाती है। गुजरात में सन् 2002 में हुए दंगों के सबक आज हमारे सामने है। कि हम साम्प्रदायिकता को रोकने में कितने सकक्षम है। 121 करोड़ जनसंख्या वाले देश में व अमन व एकता को बनाएं रखे के लिए चुनौती आसान नहीं है। ऐसे में सामाज की सक्रियता को बढ़ाना अतिआवश्यक है। समाज को भी जाति-धर्म के भेद से ऊपर उठकर भारत की एकता, शांति और सद्भावना के लिए एकजुट होना पड़ेगा। अपनी सजगता और सक्रियता को बढ़ाना होगा। समय आ गया है कि हम देश की अखंडता, धर्मनिपेक्षता व अमन-शान्ति के साथ देश की नींव बने। उसे और मजबूती प्रदान करें। ताकि किसी भी प्रकार का तत्व देश की नींव को खोखला करने का सहस न कर सके।
सुरेंद्र कुमार अधाना,

9411616463

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