आज भारत के बड़े शहर की सबसे बड़ी समस्यां को नव्ज़ को टटौले से बड़ी समस्यां जल और हवा है। जिसको फलने-फूलने के लिए वातावरण स्वंय हमने ही तैयार किया है। हम अब अधिक जागरुक होकर भी, अपनी समस्यों को अधिक बढ़ा रहे है। बड़ी समस्यां यह भी है कि हम खामियों को जानते हुए भी उन्हें दूर करने का प्रयास भी नहीं करना चाहते। जीविका हमारी है, जीवन हमारा, वातावरण हमारा है और हमारी कोशिश होती है कि उसे साफ स्वच्छ बनाने के लिए कोई दूसरा व्यक्ति पहल करेगा, ऐसा ना कभी हुआ और न ही होगा । हां एक काम हो सकता है जो हो रहा है, कि आप टेक्स दें और सरकारे या कार्यालय आप को सुविधा उपलब्ध कराएंगी लेकिन उसके भी सार्थक काम नहीं हो पा रहा है। सरकारें जहां नाकामयाब साबित हो रही हैं तो प्राइवेट फर्म उसमें सेवा भाव से आती है और फिर उससे लाभ कमाने लगती हैँ।
हाल ही के दिनों में देखा जाएं तो बड़े-बड़े शहरों में दीपावली के समय बड़े वाहनों और निर्माण कार्य को इसलिए रोकना पड़ा ताकि दीवाली के त्योहार पर वातावरण में प्रदूषण की इतनी अधिकता न हो जाएं जिससे लोगों को अपनी जान से हाथ न धोना पड़ जाए। ऐसा क्यू होता है, कि हम जब ही जागते है जब पानी सिर से ऊपर चला जाता है। आज वाहनों का आवागमन, वाहनो की बिक्री व हवा में जहर घोलने के लिए सभी आजाद है। भारत में इसपर कोई प्रतिबंध नहीं आप खुल कर अपने राष्ट्र को दूषित कर सकतें हैं। इतना ही नहीं उद्योगों से निकलने वाली जहरीली गैस, जहरीली हवा भी गंभीर समस्यां है। जिस पर व्यवस्थाएँ गौर करने के बजाएं केवल बाजार उपल्बध कराने की होड़ में है ताकि अधिक लाभ कमाया जा सके। देश के बहुत सारे क्षेत्र ऐसे है जहां उद्योगों की आवश्यकता है लेकिन गैर सरकारी उद्योगपतियों की प्रथमिकता केवल बड़े शहर ही होते है, ऐसे में उन्हें कार्यालयों से अनुमति भी मिल जाती है और स्थान भी। शहरों की हवाएं जहरीली और पानी दूषित होता जा रहा है। जिसके लिए बाजार में उससे बचने के उपाए तो लेकिन स्थिर और भविष्य के लिए कोई साकारात्मक पहल नहीं है। फेक्ट्रियों और तेल से चलने वाले वाहनों ने हम में ज़हर घोल दिया है। शायद ही कोई ऐसी अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट हो जिसमें हम 100 वें पायदान से पर हो।
पानी की समस्याएं सरकार भी जानती है जनता भी.... उसके बाद भी उसको बचाना और संरक्षण पर कोई पहल नहीं की जा रही है। आज खुले आम जमीन के अंदर से पानी बेलगाम सींचा जा रहा है, कही पानी की खुलेआम बर्बादी हो रही है। कही नगर निमन की पाइंप लाईन से 24 घंटे पानी का रिसाव होता रहता है। कही प्राइवेट उद्योग न केवल जमीनी पानी का स्तर कम कर रहे हैं बल्कि जमीनी और नहर, नदी के पानी को भी दूषित किया जा रहा है। हम आर.ओ. से पानी साफ तो कर रहे हैं, साफ पानी को पहले गंदा कर रहे फिर उससे साफ करने के लिए 2/3 पानी खराब भी कर रहे है। साथ ही भविष्य में पीढ़ी के सामने सस्याएं पैदा कर रहे है कि आप अपना सोच लो हमने तो ऐसे तैसे काम निकाल लिया है। बाजार हमेशा आपकी मजबूरी का फायदा उठाता है। पानी और स्वच्छ हवा न मिलने के चलते जिस तरह से विज्ञापनों के माध्यम से हमें डराया जा रहा है उससे लगता है कि हमें अब तक तो मर जाना चाहिए था लेकिन पता नहीं हम अभी तक जीवित कैसे है। पिछले 10 सालों में गौर करें तो सबसे ज्यादा इजाफा जल और हवा की गुणवत्ता में गिरावट आई है और जनसंख्या में वृद्धि हुई है। आज केवल शहर ही नहीं गांव भी फैल रहे है। पॉलीथीन का प्रयोग, धूम्रपान, गुटखा, अप्रत्याशित वाहनों की अंधाधुत बिक्री और खरीद, पेड़ो की कटाई, पानी की अनियोजित प्रयोग ये कुछ ऐसे गंभीर मुद्दे है जिसे घर-घर का मुद्दा होना चाहिए, लेकिन यह मुद्दा सरकारी मेनिफेस्टो का हिस्सा है जब समस्या घर से निकल कर गांव, ब्लाक और जिला स्तर की समस्या बन जाती है तो ऐसे में बड़े खर्च की जरूरत पड़ती है। 20 साल पहले गांवों में गंदगी नहीं होती। गांव भी अब बाजार का गुलाम हो गया है। गांव के बाजारों में अब बड़े स्तर पर पॉलीथीन का प्रयोग होने लगा है। शहर से निर्मित वस्तुएं सड़क बन जाने से गांव में आने लगी है। उसी के कारण कूड़ो के ढ़ेर जो शहर में मिलते थे वह अब गांव में घर कर गए है।
हाल ही के दिनों में देखा जाएं तो बड़े-बड़े शहरों में दीपावली के समय बड़े वाहनों और निर्माण कार्य को इसलिए रोकना पड़ा ताकि दीवाली के त्योहार पर वातावरण में प्रदूषण की इतनी अधिकता न हो जाएं जिससे लोगों को अपनी जान से हाथ न धोना पड़ जाए। ऐसा क्यू होता है, कि हम जब ही जागते है जब पानी सिर से ऊपर चला जाता है। आज वाहनों का आवागमन, वाहनो की बिक्री व हवा में जहर घोलने के लिए सभी आजाद है। भारत में इसपर कोई प्रतिबंध नहीं आप खुल कर अपने राष्ट्र को दूषित कर सकतें हैं। इतना ही नहीं उद्योगों से निकलने वाली जहरीली गैस, जहरीली हवा भी गंभीर समस्यां है। जिस पर व्यवस्थाएँ गौर करने के बजाएं केवल बाजार उपल्बध कराने की होड़ में है ताकि अधिक लाभ कमाया जा सके। देश के बहुत सारे क्षेत्र ऐसे है जहां उद्योगों की आवश्यकता है लेकिन गैर सरकारी उद्योगपतियों की प्रथमिकता केवल बड़े शहर ही होते है, ऐसे में उन्हें कार्यालयों से अनुमति भी मिल जाती है और स्थान भी। शहरों की हवाएं जहरीली और पानी दूषित होता जा रहा है। जिसके लिए बाजार में उससे बचने के उपाए तो लेकिन स्थिर और भविष्य के लिए कोई साकारात्मक पहल नहीं है। फेक्ट्रियों और तेल से चलने वाले वाहनों ने हम में ज़हर घोल दिया है। शायद ही कोई ऐसी अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट हो जिसमें हम 100 वें पायदान से पर हो।
पानी की समस्याएं सरकार भी जानती है जनता भी.... उसके बाद भी उसको बचाना और संरक्षण पर कोई पहल नहीं की जा रही है। आज खुले आम जमीन के अंदर से पानी बेलगाम सींचा जा रहा है, कही पानी की खुलेआम बर्बादी हो रही है। कही नगर निमन की पाइंप लाईन से 24 घंटे पानी का रिसाव होता रहता है। कही प्राइवेट उद्योग न केवल जमीनी पानी का स्तर कम कर रहे हैं बल्कि जमीनी और नहर, नदी के पानी को भी दूषित किया जा रहा है। हम आर.ओ. से पानी साफ तो कर रहे हैं, साफ पानी को पहले गंदा कर रहे फिर उससे साफ करने के लिए 2/3 पानी खराब भी कर रहे है। साथ ही भविष्य में पीढ़ी के सामने सस्याएं पैदा कर रहे है कि आप अपना सोच लो हमने तो ऐसे तैसे काम निकाल लिया है। बाजार हमेशा आपकी मजबूरी का फायदा उठाता है। पानी और स्वच्छ हवा न मिलने के चलते जिस तरह से विज्ञापनों के माध्यम से हमें डराया जा रहा है उससे लगता है कि हमें अब तक तो मर जाना चाहिए था लेकिन पता नहीं हम अभी तक जीवित कैसे है। पिछले 10 सालों में गौर करें तो सबसे ज्यादा इजाफा जल और हवा की गुणवत्ता में गिरावट आई है और जनसंख्या में वृद्धि हुई है। आज केवल शहर ही नहीं गांव भी फैल रहे है। पॉलीथीन का प्रयोग, धूम्रपान, गुटखा, अप्रत्याशित वाहनों की अंधाधुत बिक्री और खरीद, पेड़ो की कटाई, पानी की अनियोजित प्रयोग ये कुछ ऐसे गंभीर मुद्दे है जिसे घर-घर का मुद्दा होना चाहिए, लेकिन यह मुद्दा सरकारी मेनिफेस्टो का हिस्सा है जब समस्या घर से निकल कर गांव, ब्लाक और जिला स्तर की समस्या बन जाती है तो ऐसे में बड़े खर्च की जरूरत पड़ती है। 20 साल पहले गांवों में गंदगी नहीं होती। गांव भी अब बाजार का गुलाम हो गया है। गांव के बाजारों में अब बड़े स्तर पर पॉलीथीन का प्रयोग होने लगा है। शहर से निर्मित वस्तुएं सड़क बन जाने से गांव में आने लगी है। उसी के कारण कूड़ो के ढ़ेर जो शहर में मिलते थे वह अब गांव में घर कर गए है।
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