Monday 5 March 2012

पाठकों का लेखक हूं पुरस्कारों का नहीं.........काशीनाथ


साहित्य अकादमी पुरस्कार आप को देरी से दिया जा रहा है। जबकि आप से जुनियर लोगों पहले ही सम्मानित किया जा चुका है ?
ऐसा हुआ करता है और कई बार ऐसा हुआ भी है। जैसे कि मैं बताऊ कि डॉ. नामवर सिंह को पहले ही यह पुरस्कार मिल गया जबकि उनके गुरु हर्षवेदी को दो तीन साल मिला। ऐसा होता रहता है और साहित्य अकादमी भी सुधार करता रहता है जो गलतियां हो गई होती है उन्हे ठीक करती है। दूसरी बात यह है कि ऐसा भी हुआ है कि जिस किताब की मिलना चाहिए पुरस्कार उन किताबों को नहीं मिलता है और ऐसी किताबों को मिलता है जिन्हें नहीं मिलना चाहिए। ऐसा हमारे साथ नहीं हो सका है जैसी काशी काथत्ती है इससे कमतर रेहन पर रग्घू नहीं है। पुरस्कार देने के लिए लेखक को भी ध्यान में रखा जाता है कि वह सेवा कर रहा है, यहा ऐसा नहीं हुआ है। पुरस्करा की घोषणा कर साहित्य अकादमी ने कोई कृपा नहीं की है। किताब को ध्यान में रखा गया है।
उपन्यास लिखने की प्ररेणा कहा से मिली ?
प्ररेणा जैसी चीज़ वो मैं नहीं कहूगा। जब भूमंडलीकरण, उदारीकरण वगेरा के बारे में इम्पेक्ट जब मैं देख रहा था चार खेत मोहल्ले पर”  तो मेरे दिमाक में आया इसका प्रभाव शहर में नहीं बल्कि गांव में भी पड़ा होगा तो गांव में क्या बदलाव आया तो इसी बीच 21 वीं शदी में जो गांव है वह गांव तो नहीं जो मैथिलसर रूह के जमाने में थे। तो भूमण्डलीकरण के बाद बदलते हुए भारतीय गांव में एकल परिवार का विकास हुआ क्योंकि पूंजी के साथ परिवार एकल होते चले। पहले जमीन बहुत महत्वपूर्ण हुआ करती थी, लेकिन मैसूर, मुम्बई, बेग्लोर, में पाठ-पाठन करन वाले लोग वही रच-बस गए है। जमीन की जगह सर्विस ने ले ली है। तो हमें लगा कि लोग गांव को छोड़ शहर में बसना चाहते है। गांव से निकल कालोनियों में बसना चाहते है। भूमण्डलीकरण के कारण गांव भी बदले है। आम लोगों की चाह कि वह गांव में भी घर-बार चाहते है और शहर में भी उसके लिए ठिकाना रहे। ये चीजें रही। जबकि उस आदमी के बेटे की जमीन भी छूटी, बाप ने जिस शहर में मकान लिया वह भी छूटा और नौकरी करन चले गए। इस उपन्यास में रघुनाथ का एक बेटा अमेरिका में है, दूसरा बेटा नोएडा में है और एक रघुनाथ अकेले पड़े हुए है और उस लड़की के साथ रह रहे है, जिसे उनका बेटा छोड़ दूसरी शादी कर चुका है। अब वह ससुर भी नहीं, अब किस प्रकार रह रहे है। कुछ विसंगतियों, जटिलताएं, जो समस्याएं खड़ी हुई है उन पर हमारा ध्यान गया। इसपर भी भूमण्डलीकरण का इम्पेक्ट है, लेकिन काशीकांत का एक मोहल्ला है। यह गांव है और नई बनी कालोनियां है उनके बीच आदमी का अकेलापन, निरंतर आदमी के अकेले होते जाने की प्रकिया इसमें उठाई गई है।
आगामी योजना ?
 अभी तो मेरी एक कहानी तदभव त्रिका में भी आई है और मेरा एक संस्मरण जनवरी को शुक्रवार के साहित्य विशेषांक में आ रहा है।
नए साल पर कुछ विशेष ?
 ऐसा  है कि मेरे दिमाक में कहनियों ढांचा बदलने में लगा हूं। कहानी की जो मोनोटनी है उसे तोड़ना में लगा हूं। इसे तोड़ने के क्रम में अब तक में तीन कहानी लिख चुका हूं दो छोटी कहानी है और एक लम्बी और मेरे दिमाक में है कि जितनी कहानियां हो जाए। उसका  एक नए ढंग से एक कहानी संग्रह हो। नई ढंग महत्वपूर्ण है कहानी संग्रह नहीं। नए ढंग का कहानी संग्रह आएगा अगले वर्ष।
नए साल पर कुछ नया करनी की सोची हो ?
मैं वस्तुत: पाठकों का ही लेखक हूं। पुरस्कारों का नहीं हूं। मैं जो भी लिखता हूं चाहता हूं कि लोग पढ़े वरना हमारा लिखना बेकार हूं। मैं खुद अपने भीतर नया पन खोजता रहता हूं मुझे नया करने की नित तलाश रहती है कि अपने आप को रिपीट नहीं करना है। पाठकों को कुछ नूतन, नवीन देने का निरन्तर प्रयास जारी रहता है।
-    सुरेंद्र कुमार अधाना

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