Sunday 1 September 2019

नागरिकों पर वार, नियमों की कतार

आज यानि सितम्बर 2019 की पहली तारीख से भारत सरकार ने यातायात नियमों में बहुत से बदलाव किए है या यू कहे कि बदलाव नहीं सिर्फ यातायात के नियमों का उल्लंघन या नियम तोड़ने पर आपको पहले से लग रहे जुर्माने के 10 गुना तक वसूली की जाएंगी। बाकी सरकारी व्यवस्थाएं वैसी की वैसी जैसे पहले थी पुलिस पुरानी, सड़के पुरानी, व्यवस्था पुरानी, काम-काज का तरीका पुराना, सुविधाएं पुरानी, सड़को की गुणवत्ता और मानक पुराने बस बढ़ाई गई है तो कानून तोड़ने के नाम पर कानून न कह कर इसे वसूली कहना सही रहेगा। इतिहास गवाह रहा है कि भारत जैसे अधिक जनसंख्या वाले देश में जब कुछ नया करने जा रहे होते है तो बेकसू लोगों को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसका हालिया उदाहरण नोट बंदी से लिया जा सकता है। सरकारों या निति बनाने वाले को पता होना चाहिए कि जिस देश में 30-35 प्रतिशत जनसंख्या केवल खाने के लिए रात-दिन एक कर देती है। जिस देश में करोड़ों की संख्या में देश के बच्चे का शिकार हो। जिस देश में हर गली महिल्ले में तंबाकू और शराब की दुकान सिर्फ लोगों की बुद्धि खराब करने के लिए उपलब्ध हो, जो करोड़ों घरों की दैनिक समस्यां हो। ऐसे में कानून उन सब समस्याओं पर बनाने की जरूरत है। जहां हर मिनट बलात्कार जैसी घिनौनी हरकत होती हो, उन पर कानून बनाने की जरूरत है। जो लाखों मुकदमें जजों की कमी से रूके पड़े है उन पर कड़े कानून की आवश्यकता है। किसान की गरीबी, देश में प्रदूषित होता पानी, भष्टाचार, तेजी से बढ़ती शहरी गंदगी जैसे बड़े मु्ददे जीवन में रूकावट पैदा कर रहे है उन सब को नजर अंदाज कर हम ज्यादा दिनों तक आंख नहीं मूद सकते। 
सरकारों को कानून बनाने का अधिकार है, उन्हें जनहित में लागू करने का जिम्मा भी उन्हीं का है, लेकिन सरकारों को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि जिस देश के नागरिकों के लिए यह कानून बनाएं जा रहे है क्या वहां का नागरिक उन कानूनों को वहन करने के लिए तैयार भी है के नहीं। जिस देश में लगभग 45 प्रतिशत जनसंख्या की आमदनी 12 हजार रूपयों से भी कम हो, ऐसे में मोटर वाहन का प्रदूषण फैलाने पर 10,000  रुपये का जुर्माना कैसे संभव है और मान भी लें कि संभव है उसकी आड़ में जो एक प्रदूषण संबंधि प्रमाण पत्र दिया जाता है वह मात्र कागज है सभी के वाहन उसके मुताबित सही है। सरकारें ऐसे काम काज को कैसे मूक-बधिर बने कैसे देख सकती हैं हम सब जानते है कि जो प्रदूषण प्रमाण पत्र देते है वह किसी मानक या किसी तकनीकि का प्रयोग नहीं करते बस फोटो खीचते है और कागज़ का टुकड़ा पकड़ देते है। 
कोई भी तंत्र ऐसा नहीं हो सकता कि उसे अपनी जनता की जानकारी ना हो और यदि ऐसा है तो पहले वह जनता को जाने फिर उसके लिए कानून तैयार करें। जनता जब रोटी के लिए जुगत कर रही हो ऐसे में उससे बड़े दण्ड की भरपाई करपाना संभव नहीं है और यदी वह किसी प्रकार दण्ड की भरपाई कर भी देता है  तो ऐसे में उसके परिवार की जीविका का क्या होगा उस पर भी कानून बनाने से पहले विचार करने की आवश्यकता है। कानून बने, लेकिन उन सब के विरूद्ध जो परम आवश्यक मुद्दे है जैसे नशे में गाड़ी चलाना, धूम्रपान करते हुए गाड़ी चलाना, मोबाइल पर बाते करना, हेल्मेट न लगाना, तेज रफ्तार में गाड़ी चलाना, ओवर-लोडिग आदि ऐसे नियम हो सकते है जो कड़ाई से पालन कराने की आवश्यकता है। 
सवाल यह भी उठता है कि जब कानून बनाने वाले और रखवाले ही स्वयं कानून तोड़ेंगे तो उन पर सामान्य नागरिक से दो गुना जुर्माना वसूला जाना चाहिए, क्योंकि वही देश को उदाहरण प्रस्तुत करते है। किसी नेता और पुलिस की गाड़ी के लिए नियम अलग नहीं हो सकते । यदि रिसर्च पर गौर करेंगे तो पाएंगे अधिकांशत सरकारी तंत्र की सुविधाएं ही अधिक खराब स्थिति में हैं, अधिकांश लोकल बस और किसी-किसी रोडवेज बस की स्थिति इतनी दयनीय होती है कि बैठने लायक नहीं होती दूसरा उसमें ओवर लोडिंग का तो मुद्दा आम है। ऐसे में हमें स्वयं में स्थिति की खमियाओं को खोजने की आवश्यकता है, जनता का क्यां है बेचारी थी और बेचारी रहेगी।

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