उसे न किसी की बात सुहाए, न भाए बरसात।
वह अपनी ही धुन में रहती , चाहे रात्रि हो, चाहे प्रभात।।
वह अपनी ही धुन में रहती , चाहे रात्रि हो, चाहे प्रभात।।
सारे दिन वह भर-भर सोए, रात्रि में हो जाए उठ तैयार।
रातों में वह सपने बुनती, सुबह थक, सो जाए भरमार।।
सभी को वह टक-टक देखे, पहचाने सबको बार-बार।
थोड़ी देर में सब भूल जाती, फिर से जांचे बारम्बार।।
मैं तरस्ता हूं, उसके एक दिदार को।
प्रेम उसे करता हूं... अथाह ! भरमार !!
© सुरेद्र कुमार अधाना
दिनांक : 22 फरवरी 2015 (कविता लिखने की तिथि)
मैेरे प्रथम जन्मदिवस पर 07 माह की नन्हीं परी, नींद में ही शुभकामनाएं देती हुई। |
8 comments:
Achi hai bhai
nice lines
कृष्ण अधाना जी और शिवानी जी आप दोनों का धन्यवाद। आप को कृति पसंद आयी । मुझे अच्छा लगा। हौसला अफ़्जाही के लिए शुक्रिया।
sir aapka ka thodi na hai first birthday
very nice lines sir in your poem
Lovely pem sir and your daughter is soooo cute
Mahima chauhan
thank you mahima
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