जंगलों का जलना सहज है, जंगलों को जलाकर ही हम इस
आधुनिकता के पड़ाव तक पहुंचे है। जंगलों को काटकर और उन्हें जलाकर ही हमारे
पूर्वजों ने अपने पेट की भूख को मिटाया है। अपने अस्तित्व को बनाया है फिर
धीरे-धीरे बढ़ाया है। जंगल एक ऐसा बहुत छोटा सा लेकिन समूचा शब्द है जो हमारे
अस्तित्व की नींव रखता है। जंगल ने हमारी पेट पूजा ही नहीं ब्लकि रहने, बसने, घर
बनाने, अर्थ कमाने, खेती करने, पशुओं को चराने-बसाने, पकड़ने-बांधने न जाने कितने
कुछ यंत्रों को दिया है। जंगलों के कारण मानव की खोज़ सतत् जारी रहीं और जंगलों से
ही हम सबकी पूर्ति होती रही।
हमने न केवल जंगलों को जलाया है बल्कि
पशु-पक्षियों, जंगली जानवरों, कीट-पतंगों, पानी में जीवित व अजीवित, पहाड़, नदियो,
पानी न जाने कितने कुछ चीजों का दोहन केवल अपने फायदे और अपने जीवन को सुरक्षित
करने के लिए किया है। मानव ने हर चीज़ जो हमारे काम आ सकती है सब को अपने हिसाब से
तोड़ा-मरोड़ा है। जितना वह समेट सकता था समेटा है। जितना वह पा सकता था उसने लूटा
है। जितना वह बर्बाद कर सकता था वह किया है, लेकिन अपने हिस्से का काम आज तक मानव
ने प्रकृति अनुरूप नहीं किया है।
यह हर मानव जानता है कि प्रकृति से जो हमें मिला
है या मिल रहा है वह अनमोल है। उसका विकल्प शायद हो सकता है, लेकिन जो प्राकृतिक रूप
से अपने असल रूप में हमें मिला है वह पूर्ण है। चाहें वह हवा हो, पानी हो, पहाड़
हो, जंगल हो, पशु हो, जानवर हो या छोटे-छोटे कीट-पतंगे। सभी की जीविका का चक्र पर्यावरण
और प्रकृति में निहित है। प्रकृति ने सभी को संतुलित किया है ताकि ताल-मेल से धरा
पर करोड़ों योनियां रच-बस सके, विकसित हो सकें।
जब किसी भी कार्य की अति हो जाती है तो हम संकट
से ज़रूर गुज़रे है यह प्रकृति भी दर्शा देती है और हमारी तकनीकि भी इस ओर इशारा
कर चुकी है। हम हर रोज न जाने कितने पेड़ों, जंगलों और हरियाली को चाहते, न चाहते
खत्म करते जा रहे है जिसके दूर-गामी परिणाम हमारी पीढ़ियां भुगतेगी। विकास के रूप
में पेड़ों की कटाई हो, या जंगलों में लगी आग यह सब हम सब के हिस्से के भविष्य का
नाश कर रही है जिसकी आहट हम सबकों समझनी चाहिए। अमेजोन में लगी आग और
आस्ट्रेलिया में जले जंगलों ने न केवल प्रकृति को नष्ट किया है ब्लकि जंगल
जीवन के चक्र को प्रभावित किया है। जिसे बनने, विकसित होने, तालमेल बैठाने में
वक्त जरूर लगेगा। यह हम सब के हिस्से की आग है जो धीरे-धीरे सुगल रही है। जो एक
दिन धरा की प्रत्येक चीज़ को नष्ट कर देगी।
- सुरेन्द्र कुमार अधाना
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