भ्रष्टाचार ने आम आदमी को खोखला कर छोड़ दिया..
सत्त लेकर चंद लोगों ने धरती का दामन खोस लिया...
अहंकार उनके, अधिकार उनके,उनकी है जीवन लीला...
किसान,मजदूर, रिक्शा, दिहाडी करता फिरता है मतमिला..
इनकी चमक दमक को खा जाने वाले रहने है वातानुकूलित कारों में...
वो फिरते है भटके भटके टुकड़ों के बटवारों में....
छीन ली उनकी खुशिया, बिटायां की माथे की बिंदियां...
कैसे रहेंगे वो लोग खुश जो नहीं चाहते गरीबों के चूहले को...
राम भी देता उनको उनके ही बटवारे को ...
कही न कही आहत तो होती है उनकी भी संवेदनाएं...
कौन किस से बड़ा पता चल जाता है व्यवहारों से...
खुशियां छिपाने, नैन न मिलाते फिरते वो लोग खुशी की तालाश में...
जो छीन रहा दूसरे का टुकड़ा कहा तक बच पाए है ऐसे अधियारे से ..
एक दिन चले जाना है इन महल, भवन, चौबारे से...
किस दुख क्या होता है क्या पहचाना है इन लोगों ने ...
जो नोट की दौतल में रहते है...आंखों से अंधे हुए..
एक दिन आख खुला जानी है आंख बंद हो जाने के बाद ....
काम न कुछ आएगा समय के बीत जाने के बाद..............................©सुरेंद्र कुमार अधाना
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