दिल करता है मेघ घिर आए,
घनघोर घटाये....नीर बरसाए...
पावक (बारिश) की बूंदे पादप
(वृक्ष) पर टपकाए, शोर मचाए..दिल बहलाए...
सरोवर (तालाब) भर आए..जलाशय
बन जाए, सरिता में परिणत हो जाए...
सरोज (कमल) खिल आए... वेदना
घट जाए और हमारा वासर (दिन) बन जाए...
जलधर संग दामिनी (बिजली)
खड़खड़ाए, दिल घबराए धड़कने बढ़ जाए...
सुमन खिल आए...तितली
मंडराए....विपिन (वन) में कही खो जाए...
----------------- © सुरेंद्र कुमार अधाना
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