Sunday 5 August 2012

यादें कुछ यू आती है...


यादें कुछ यू आती है...ताजी हवा की तरह आती और चली जाती हैकभी होंठो पर छोटी सी मुस्कान, तो कभी आखों में चमकगालों पर लाली और सासों में शीत अहसास दे जाती है।चांदनी छटा की तरह आप का दृश्य कभी-2 नज़र आता हैसोचता हूं कि कभी यह अपना था.....जो धीरे- धीरे वीरान सा हुआ जाता है।सावन भी भिगो जाता है बार-2 आप के दामन कोजिसको सुखाने की कोशिश में....मेरे यादों का सागर उमड़ आता है।रोकना चाहता हूं मैं इन उठती घटाओं कोहंसता हूं कि पागल मन ऐसा क्यों चाहता है।टीस सी उठती है मन में जब...जब इस दामन में किसी का स्पर्श हो जाता है।फिर दिल को तस्सली देता हूं ...कि ये तो प्रकृति है भला इसे भी क्या रोका जा सकता हैयादों ने तो जड़ कर दिया है, मौसम की रावानगी को भीतो इस बादल पर मेरा वश क्यों नहीं चल पाता है ?
..........© सुरेंद्र कुमार अधाना.........

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